बस्तर के प्रतिष्ठित साहित्यकार स्वर्गीय लाला जगदलपुरी ने भगवान श्रीराम के दंडकारण्य प्रवास की कथा को अपनी लेखनी से समृद्ध किया। लगभग पांच दशक पहले, उन्होंने स्थानीय आदिवासी बोली हल्बी में राम चालीसा और राम कथा की रचना की थी।
श्रीराम के दंडकारण्य प्रवास पर आधारित ये दोनों रचनाएँ आज भी उनके परिजनों के संरक्षण में हैं। राम कथा में रामचरितमानस की कथा का सारांश प्रस्तुत किया गया है, जो भोपाल से प्रकाशित हुई थी। हालांकि, अब इन दोनों रचनाओं की प्रतियाँ सार्वजनिक ग्रंथालयों में उपलब्ध नहीं हैं।
लाला जगदलपुरी के भतीजे विनय श्रीवास्तव बताते हैं कि वे इन और अन्य साहित्यिक कृतियों का पुनः प्रकाशन करवाने के प्रयास में हैं। इसके लिए वे नई दिल्ली के नेशनल बुक ट्रस्ट से संपर्क कर रहे हैं ताकि स्थानीय बोली में यह धरोहर पाठकों तक दोबारा पहुँच सके।
राम कथा:
राम कथा 104 पृष्ठों की पुस्तक है, जिसमें 21 अध्याय संकलित हैं। इनमें राम जन्म, राम विवाह, कैकेयी के वरदान, राम वनवास, युद्ध, नागफांस से मुक्ति, मेघनाद वध, रावण वध जैसे महत्वपूर्ण प्रसंग शामिल हैं। हल्बी में इन कथाओं को पढ़ना एक अनूठा और आनंददायक अनुभव है। इसके साथ ही, पुस्तक में रेखांकन के माध्यम से कथा का चित्रात्मक प्रस्तुतीकरण भी किया गया है।
बस्तर की संस्कृति और कला पर अमूल्य योगदान
लाला जगदलपुरी का जन्म 17 नवंबर 1920 को जगदलपुर में हुआ था। मात्र 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने लेखन कार्य प्रारंभ किया। हिंदी के साथ ही वे हल्बी और छत्तीसगढ़ी के प्रतिष्ठित कवि माने जाते हैं। बस्तर के इतिहास, संस्कृति और साहित्य पर उनकी रचनाएँ इस क्षेत्र की अमूल्य धरोहर हैं।
कौन हैं लाला जगदलपुरी? जिन्होंने हल्बी में लिखी रामायण
