छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले के छोटे आदिवासी गाँव बेलाकछार की बेटी संजू देवी ने अपनी मेहनत, इच्छा-शक्ति और लगन के दम पर ऐसा इतिहास रचा है, जिस पर पूरा प्रदेश गर्व कर रहा है। मज़दूर पिता और गृहिणी माँ के बेहद साधारण और आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्मी संजू के पास संसाधन भले सीमित थे, लेकिन उनका जज़्बा और हिम्मत कभी सीमित नहीं हुई।
संजू ने कबड्डी की शुरुआत 2016 में गाँव के स्थानीय टूर्नामेंटों से की। उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए जिला कबड्डी संघ और ज्योति क्लब ने उन्हें निःशुल्क प्रशिक्षण और रहने की सुविधा दी। इसके बाद संजू का चयन बहतराई एक्सीलेंस सेंटर की पहली बालिका आवासीय कबड्डी अकादमी में हुआ, जहाँ उन्हें नियमित कोचिंग, फिजियोथेरेपी और आधुनिक खेल सुविधाओं का पूरा लाभ मिला। कोच दिल कुमार राठौर की मेहनत और संजू के अटूट समर्पण ने उन्हें राज्य से राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया।
मार्च 2025 में एशियन महिला कबड्डी चैंपियनशिप में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने के बाद, संजू ने अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल की—महिला कबड्डी वर्ल्ड कप 2025 में भारत की ऐतिहासिक जीत।
ढाका में खेले गए फाइनल में संजू देवी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 16 अंक बनाए और एक सुपर रेड के साथ मैच का रुख बदल दिया। उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें पूरे टूर्नामेंट की ‘Most Valuable Player (MVP)’ का सम्मान मिला।
संजू की यात्रा यह साबित करती है कि कठिन परिस्थितियाँ कभी किसी के सपनों की राह नहीं रोक सकतीं। गाँव की मिट्टी में खेलना शुरू करने वाली यह आदिवासी बेटी आज अपनी कड़ी मेहनत और अटूट जज़्बे के दम पर कबड्डी वर्ल्ड कप के मंच पर चमक रही है।
उनकी कहानी हर उस लड़की और युवा के लिए प्रेरणा है, जो सपने देखने का साहस रखते हैं। सही अवसर, उचित प्रशिक्षण और मजबूत हिम्मत—इन तीन चीज़ों के साथ कोई भी मंज़िल दूर नहीं रहती।





