JPRA 2001 और PESA 1996: एक विश्लेषण

झारखंड में पंचायती राज अधिनियम (JPRA) और पेसा कानून (PESA) के बीच का विवाद न केवल संवैधानिक मुद्दा है, बल्कि यह आदिवासी अधिकारों और उनके संसाधनों की रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह लेख JPRA 2001 और PESA 1996 को परिभाषित करते हुए उनके बीच के अंतर और मौजूदा विवाद के दोनों पक्षों पर प्रकाश डालता है।

JPRA 2001 (झारखंड पंचायती राज अधिनियम 2001)

JPRA 2001 झारखंड राज्य में पंचायतों के गठन, अधिकारों, और कार्यों को निर्धारित करने वाला एक कानून है। यह 73वें संविधान संशोधन के आधार पर बना है, जिसका उद्देश्य देशभर में पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करना है।

मुख्य विशेषताएं:

  1. राज्य के सभी क्षेत्रों में पंचायतों के गठन का प्रावधान।
  2. पंचायती राज व्यवस्था को तीन स्तरों (ग्राम, प्रखंड, जिला) पर लागू करना।
  3. सामान्य क्षेत्रों और अनुसूचित क्षेत्रों के लिए समान कानून।

PESA 1996 (पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996)

PESA 1996 संविधान की छठी अनुसूची के तहत आने वाले अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से बनाया गया कानून है। इसका उद्देश्य आदिवासियों को उनकी परंपराओं, रीति-रिवाजों, और संसाधनों पर अधिकार देना है।

मुख्य विशेषताएं:

  1. ग्राम सभाओं को सर्वोच्च अधिकार प्रदान करना।
  2. खनन, भूमि अधिग्रहण, और अन्य आर्थिक गतिविधियों में ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य।
  3. परंपरागत रीति-रिवाजों और संसाधनों की रक्षा।
  4. केवल अनुसूचित क्षेत्रों में लागू।
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JPRA 2001 और PESA 1996 के बीच मुख्य अंतर

  1. लागू क्षेत्र:
    JPRA 2001 पूरे राज्य में लागू होता है, जिसमें सामान्य और अनुसूचित क्षेत्र दोनों शामिल हैं। वहीं, PESA 1996 केवल अनुसूचित क्षेत्रों के लिए बनाया गया एक विशेष कानून है।
  2. ग्राम सभा की भूमिका:
    JPRA 2001 में ग्राम सभा की भूमिका सीमित है और कई मामलों में निर्णय लेने का अधिकार पंचायत या सरकार के पास है। इसके विपरीत, PESA 1996 ग्राम सभा को सर्वोच्च अधिकार प्रदान करता है, विशेष रूप से भूमि, खनन, और परंपरागत प्रथाओं से जुड़े मामलों में।
  3. संवैधानिक आधार:
    JPRA 2001 संविधान के 73वें संशोधन पर आधारित है, जो पूरे देश में पंचायती राज संस्थाओं को बढ़ावा देने के लिए लागू हुआ। जबकि, PESA 1996 संविधान की पांचवीं अनुसूची पर आधारित है, जो अनुसूचित क्षेत्रों और आदिवासी समुदायों के विशेष अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया है।
  4. संसाधनों पर अधिकार:
    JPRA 2001 के तहत संसाधनों पर अधिक नियंत्रण राज्य सरकार के पास है। इसके विपरीत, PESA 1996 में संसाधनों पर प्राथमिक अधिकार ग्राम सभा को दिया गया है।
  5. कानून का उद्देश्य:
    JPRA 2001 का उद्देश्य राज्य भर में पंचायत व्यवस्था को मजबूत करना है, जबकि PESA 1996 का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समुदायों की परंपराओं, रीति-रिवाजों और संसाधनों की रक्षा करना है।
  6. विशेष और सामान्य कानून:
    JPRA 2001 एक सामान्य कानून है, जो सभी क्षेत्रों में समान रूप से लागू होता है। दूसरी ओर, PESA 1996 अनुसूचित क्षेत्रों के लिए एक विशेष कानून है, जो इन क्षेत्रों की अद्वितीय सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखता है।
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इन अंतरों के आधार पर यह स्पष्ट है कि JPRA 2001 और PESA 1996 की संरचना, उद्देश्य और प्रभाव क्षेत्रों में बुनियादी भिन्नताएं हैं।


मौजूदा विवाद: दोनों पक्षों के तर्क

सरकार का पक्ष:

झारखंड सरकार और पंचायती राज विभाग का कहना है कि JPRA 2001 संवैधानिक रूप से वैध है और इसे PESA कानून के रूप में लागू किया जा सकता है।

  1. संवैधानिकता की पुष्टि:
    सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न फैसलों में JPRA 2001 को वैध ठहराया है।
  2. कानून की एकरूपता:
    सरकार का मानना है कि JPRA 2001 राज्य के सभी क्षेत्रों में लागू करने से प्रशासनिक प्रक्रिया आसान होगी।
  3. न्यायालय के आदेश:
    उच्च न्यायालय ने PESA नियमावली बनाने का आदेश दिया है, लेकिन JPRA 2001 को असंवैधानिक नहीं ठहराया है।

आदिवासी संगठनों का पक्ष:

आदिवासी संगठनों और बुद्धिजीवियों ने सरकार के इस कदम की कड़ी आलोचना की है।

  1. विशेष कानून का उल्लंघन:
    उनका तर्क है कि PESA 1996 अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विशेष कानून है। सामान्य कानून (JPRA 2001) को वहां लागू करना संविधान का उल्लंघन है।
  2. आदिवासी अधिकारों की अनदेखी:
    PESA ग्राम सभा को सर्वोच्च अधिकार देता है, जबकि JPRA राज्य सरकार को अधिक शक्ति देता है।
  3. संसाधनों पर नियंत्रण:
    JPRA के जरिए खनन, भूमि अधिग्रहण, और अन्य आर्थिक गतिविधियों पर सरकार का नियंत्रण बढ़ेगा, जिससे आदिवासी समुदायों के संसाधनों का शोषण होगा।
  4. न्यायालय की अवहेलना:
    2024 के उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, राज्य सरकार को PESA की नियमावली बनानी चाहिए, लेकिन सरकार JPRA के माध्यम से इसे दरकिनार कर रही है।
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निष्कर्ष और सिफारिशें

JPRA 2001 और PESA 1996 के बीच का यह विवाद न केवल संवैधानिकता का प्रश्न है, बल्कि यह आदिवासी समुदायों के अधिकार और उनकी पहचान से भी जुड़ा है।

संविधान का पालन: अनुसूचित क्षेत्रों में PESA जैसे विशेष कानून लागू करने की आवश्यकता है।

संतुलित दृष्टिकोण: राज्य सरकार को सभी पक्षों के साथ संवाद करके ऐसा समाधान निकालना चाहिए, जो न केवल संवैधानिक हो, बल्कि आदिवासी हितों की भी रक्षा करे।

पारदर्शिता: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पंचायती राज और संसाधन प्रबंधन में आदिवासी समुदायों की भागीदारी बढ़े।

झारखंड की विशेष परिस्थितियों में एक संतुलित और समावेशी दृष्टिकोण ही सही दिशा दिखा सकता है।

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