संताली संस्कृति का ‘जीवंत संग्रहालय’: खुला चेंजोड़ा हैरिटेज विलेज

झारखंड, 30 अक्टूबर:
पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला प्रखंड के काशिदा पंचायत अंतर्गत चेंजोड़ा गांव अब संताली संस्कृति के एक ‘जीवंत संग्रहालय’ के रूप में पर्यटकों के लिए खुल गया है। जमशेदपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित यह स्थल गैर-लाभकारी संस्था कलामंदिर द्वारा स्थानीय समुदाय की साझेदारी में विकसित किया गया है। एक दशक से अधिक के शोध और श्रम के बाद यह परियोजना अब पूरी तरह साकार हुई है।

करीब 2.5 एकड़ क्षेत्र में फैला चेंजोड़ा हैरिटेज विलेज पारंपरिक संताली जीवन का पुनर्निर्मित रूप है—जहां समुदाय की परंपराएं, त्यौहार, शासन प्रणाली, संगीत, भोजन संस्कृति और लोककथाएं सजीव रूप में प्रस्तुत की गई हैं। गांव में मिट्टी की झोपड़ियां, रेस्टोरेंट, कॉन्फ्रेंस हॉल, प्रदर्शनी स्थल और संताली कथाओं से प्रेरित भित्ति चित्र इसे विशिष्ट पहचान देते हैं।

पर्यावरण और परंपरा का संगम

संताली समुदाय की लक्ष्मी हंसदा बताती हैं, “पिछले छह वर्षों में हमने लगभग चार हजार पेड़ लगाए हैं और इस भूमि को खेतों, जलाशयों और जंगलों से भरपूर एक हरित क्षेत्र के रूप में पुनर्जीवित किया है। अब यहां पक्षी, मछलियां और कीट-पतंगे लौट आए हैं। खेतों में सालभर खेती संभव हो पाई है।”

परियोजना में पारिस्थितिक संतुलन पर विशेष ध्यान दिया गया है। गांव के आंगनों में कदम, महुआ, सागवान, जामुन, आम, कटहल और नीम जैसे वृक्ष लगाए गए हैं। जंगलों में बिना पेड़ काटे सर्पाकार पगडंडियां और पत्थर की बैठने की जगहें बनाई गई हैं। साथ ही, नए बागानों में चीकू, नींबू, गम्हार, सिसम और बाँस के पौधे लगाए गए हैं, जो समुदाय के लिए फल, चारा और जलाऊ लकड़ी का स्रोत बनेंगे। प्रत्येक वृक्ष के साथ उसका वनस्पतिक और संताली नाम भी अंकित है ताकि आगंतुकों में पर्यावरणीय जागरूकता बढ़े।

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आधुनिक सुविधाएं, पारंपरिक अनुभव

पर्यटकों के लिए यहां पारंपरिक कॉटेज, उच्च गुणवत्ता वाले तंबू, सौर ऊर्जा चालित लाइटें, स्वच्छ पेयजल और साफ-सुथरे शौचालय जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। तालाबों में मछली पालन और बत्तख पालन की व्यवस्था की गई है। निकट भविष्य में पक्षी-दर्शन, पारंपरिक तीरंदाजी, फोटोग्राफी और जैव-विविधता अध्ययन शिविर भी आयोजित किए जाएंगे।

प्रेरणा: माझी रामदास टुडु की पांडुलिपि से

कलामंदिर को इस परियोजना की प्रेरणा 2013 में मिली, जब संस्था के शोधकर्ता झारखंड की लुप्त होती कला और संस्कृति का दस्तावेजीकरण कर रहे थे। उसी दौरान उन्हें 19वीं सदी के संताली शिक्षक और इतिहासकार माझी रामदास टुडु की पांडुलिपि ‘खेलवाल बोंगशो धोरोमपुथी’ मिली, जिसमें उन्होंने संताली इतिहास और दर्शन को बंगाली लिपि में दर्ज किया था।
कलामंदिर के संस्थापक अमिताभ घोष के अनुसार, “टुडु का कार्य इस परियोजना की आत्मा बना। उनकी दृष्टि ने हमें यह सोचने की प्रेरणा दी कि संस्कृति को केवल संरक्षित नहीं, बल्कि पुनर्जीवित भी किया जा सकता है।”

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संताली शासन और पौराणिक कथाएं

यहां आगंतुक पारंपरिक ‘मोरे होर’ परिषद प्रणाली से परिचित हो सकते हैं—जहां माझी (मुखिया), जोग माझी और नायके (पुजारी) समुदाय के न्याय और निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं।
भित्ति चित्रों में पिलचू हरम और पिलचू बुधी की कहानी चित्रित है, जिन्हें संताली समाज मानव जाति का प्रथम स्त्री-पुरुष मानता है। परिसर में जाहेरथान (पूजा स्थल), आखरा (नृत्य स्थल) और जलाशय भी बनाए गए हैं, जो सिंचाई और मत्स्य पालन दोनों के लिए उपयोगी हैं।

रोजगार और सम्मान का संगम

इस परियोजना से लगभग 100 संताली लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा—50 पारंपरिक नर्तक और संगीतकार, 20 आतिथ्य सेवाओं में, और अन्य लोग चित्रकार, माली, ड्राइवर, सफाईकर्मी और तकनीशियन के रूप में कार्य करेंगे। पर्यटन सीजन में 35 से 40 स्थानीय महिलाएं प्रबंधन और देखभाल की जिम्मेदारी संभालेंगी।
अमिताभ घोष कहते हैं, “यह पहल सिर्फ आजीविका नहीं, बल्कि सम्मान का प्रतीक है। संतालों को लंबे समय से मुख्यधारा के विकास से वंचित महसूस कराया गया है, लेकिन यहां उनकी परंपराओं को सम्मान और पहचान दोनों मिल रही है।”

पर्यटन प्रबंधन और सांस्कृतिक उत्सव

भादो मुर्मु की अध्यक्षता में गठित ‘हैरिटेज टूरिज्म संचालन समिति’ गांव का प्रबंधन करेगी। मुर्मु बताते हैं, “यह गांव अब गर्व का प्रतीक बन गया है। यह हमारी मेहनत, हमारी संस्कृति और हमारी पहचान का परिणाम है।”

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पर्यटकों को पारंपरिक संताली व्यंजन जैसे सोर्रे, लेटो, पीठा और साल के पत्तों में पका चिकन या मशरूम परोसे जाएंगे। साथ ही बाँस, आँवला, इमली और हाथीपाँव के अचार भी उपलब्ध होंगे। शाम को लोकनर्तक ‘लांगड़े’ जैसे पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत करेंगे, और ‘आखरा’ में सोहराई, सरहुल, मकर, बाहा और कर्मा जैसे त्योहार मनाए जाएंगे।

स्मृति चिन्ह के रूप में संताली कुल-परंपराओं से प्रेरित टैटू प्रिंट (दाग चित्र) उपलब्ध होंगे। ये उसी पुरानी परंपरा से जुड़े हैं जिसमें प्रत्येक कुल को विशेष कार्य सौंपे जाते थे—जैसे बढ़ईगीरी हंसदा को, खेती मर्डी को और शिक्षण हेम्ब्रम को।

स्थानीय पर्यटन का नया केंद्र

अधिकारियों के अनुसार, इस स्थल को बुरुडीह झील, रंकिणी मंदिर, धारागिरी जलप्रपात और घाटशिला में स्थित प्रसिद्ध उपन्यासकार विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय के घर से भी जोड़ा जाएगा, ताकि एक व्यापक पर्यटन सर्किट तैयार हो सके।

अमिताभ घोष कहते हैं, “चेंजोड़ा हैरिटेज विलेज यह याद दिलाता है कि आदिवासी ज्ञान केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक जीवंत दिशा है।”

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