माधवी पुरी बुच, जो भारत की पहली महिला और निजी क्षेत्र से आने वाली पहली SEBI प्रमुख बनीं, आज 28 फरवरी 2025 को अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा कर रही हैं। उनके स्थान पर वित्त सचिव तुहिन कांता पांडे को नया सेबी प्रमुख नियुक्त किया गया है।
तीन साल का उल्लेखनीय कार्यकाल
माधवी पुरी बुच का कार्यकाल नियामकीय सुधारों और चुनौतियों से भरा रहा। 2 मार्च 2022 को पदभार संभालने के बाद, उन्होंने कई महत्वपूर्ण बदलाव लागू किए, जिनमें—
- इक्विटी सेटलमेंट प्रक्रिया में तेजी,
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के लिए पारदर्शिता बढ़ाना,
- ₹250 के न्यूनतम SIP के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश को बढ़ावा देना शामिल हैं।
SEBI प्रमुख बनने से पहले, वे अप्रैल 2017 में सेबी के बोर्ड में पूर्णकालिक सदस्य बनी थीं और बाद में मार्च 2022 में अध्यक्ष के रूप में अजय त्यागी की जगह ली।
हिंडनबर्ग विवाद और कार्यकाल का अंत
हालांकि उनके कार्यकाल में कई उपलब्धियां रहीं, लेकिन अंतिम वर्ष हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट और आंतरिक विरोध के कारण विवादों से घिरा रहा।
- हिंडनबर्ग रिसर्च और कांग्रेस पार्टी ने उन पर हितों के टकराव का आरोप लगाया, जिससे अदानी समूह की जांच में देरी हुई।
- रिपोर्ट में उनके और उनके पति धवल बुच पर विदेशी निवेश से जुड़े विवादित आरोप लगाए गए, हालांकि उन्होंने इनकार करते हुए कहा कि ये निवेश SEBI से जुड़ने से पहले के थे और सभी नियामकीय प्रक्रियाओं का पालन किया गया था।
- SEBI कर्मचारियों द्वारा “टॉक्सिक वर्क कल्चर” के खिलाफ विरोध भी एक बड़ी चुनौती बना।
SEBI में बुच की ऐतिहासिक भूमिका
माधवी पुरी बुच ने महिला नेतृत्व और निजी क्षेत्र से नियामकीय भूमिका में आने की परंपरा को तोड़ा और अपने कार्यकाल में महत्वपूर्ण सुधार किए। हालांकि विवादों के बावजूद, उन्होंने SEBI में पारदर्शिता और बाजार नियमन को नई दिशा देने की कोशिश की। अब तुहिन कांता पांडे पर ज़िम्मेदारी होगी कि वे इन सुधारों को आगे बढ़ाएं और SEBI की साख को और मजबूत करें।