बौद्ध धर्म, जो अक्सर शांति, करुणा और अहिंसा का प्रतीक माना जाता है, कभी एशिया के बड़े हिस्से में समृद्ध था। यह अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन और म्यांमार जैसे क्षेत्रों में प्रमुख आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शक्ति था। लेकिन इतिहास की विडंबना यह है कि बौद्ध धर्म इन क्षेत्रों से या तो समाप्त हो गया या हाशिए पर चला गया। इसके विपरीत, कुछ जगहों पर, जैसे म्यांमार में, बौद्धों ने हिंसक रुख अपनाया, जहाँ उन्हें अपनी पहचान की रक्षा करनी पड़ी।
यह विरोधाभास — कि अहिंसा पर आधारित धर्म हिंसा के रास्ते पर क्यों चला गया — गहरे राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कारणों को उजागर करता है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन में बौद्ध धर्म का पतन, और म्यांमार में उसकी हिंसक प्रतिक्रिया का विश्लेषण एक धार्मिक कहानी से कहीं अधिक है; यह विजय, अस्तित्व और पहचान की कहानी है।
आइए इस विषय का गहराई से विश्लेषण करें।
- दक्षिण एशिया और चीन में बौद्ध धर्म का पतन
A. अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में बौद्ध धर्म कुषाण साम्राज्य (दूसरी शताब्दी ई.) के दौरान फला-फूला। यहाँ गांधार कला और महायान बौद्ध धर्म का केंद्र बना। लेकिन इसके पतन के मुख्य कारण थे:
इस्लामिक विजय (7वीं–10वीं शताब्दी): अरब सेनाओं के आगमन से धीरे-धीरे मध्य एशिया का इस्लामीकरण हुआ। बौद्ध मठों को निशाना बनाया गया क्योंकि वे सांस्कृतिक और आर्थिक शक्ति के प्रतीक थे।
स्मारकों का विनाश: बामियान की बुद्ध प्रतिमाएँ, जो अफगान बौद्ध धर्म के प्रतीक थीं, आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दी गईं, हाल ही में 2001 में तालिबान द्वारा।
सामाजिक धर्मांतरण: कई स्थानीय समुदाय सदियों में इस्लाम में परिवर्तित हो गए, या तो आकर्षणवश या शासकों के दबाव में।
प्रभाव: बौद्ध धर्म समाप्त हो गया और उसके आध्यात्मिक नेता भाग गए या मुस्लिम समाज में समाहित हो गए।
B. पाकिस्तान और बांग्लादेश
आधुनिक पाकिस्तान और बांग्लादेश कभी समृद्ध बौद्ध सभ्यता का हिस्सा थे। यहाँ बौद्ध धर्म के पतन के कारण थे:
- तुर्क-इस्लामी आक्रमण: 10वीं–12वीं शताब्दी में गजनवी आक्रमणों ने तक्षशिला और पहाड़पुर जैसे बौद्ध केंद्रों को नष्ट कर दिया।
- हिंदू पुनर्जागरण: मध्यकालीन बंगाल में ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म के पुनरुत्थान से बौद्ध धर्म के संस्थान हाशिए पर चले गए।
- सामाजिक समावेशन: बौद्ध लोग, उत्पीड़न के कारण या संरक्षण की कमी के चलते, इस्लाम में परिवर्तित हो गए या हिंदू समाज में समाहित हो गए।
प्रभाव: मध्यकाल के अंत तक, बौद्ध धर्म इन क्षेत्रों में संगठित धर्म के रूप में समाप्त हो गया।
C. चीन
चीन बौद्ध धर्म के प्रसार का मुख्य केंद्र था, लेकिन यहाँ भी इसके दमन के दौर आए:
- साम्राज्यवादी नीतियाँ: तांग वंश (9वीं शताब्दी ई.) के दौरान बौद्ध धर्म को विदेशी और कन्फ्यूशियस मूल्यों के लिए खतरा माना गया। सम्राट वुज़ोंग ने मठों को नष्ट किया और उनकी संपत्ति जब्त की।
- कम्युनिस्ट शासन (20वीं शताब्दी): माओ ज़ेडॉन्ग के शासनकाल में सांस्कृतिक क्रांति (1966–76) के दौरान बौद्ध संस्थानों को अंधविश्वास का प्रतीक मानकर निशाना बनाया गया।
प्रभाव: बौद्ध धर्म कमजोर हुआ लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ। आज भी इसका प्रभाव चीन में मौजूद है।
- म्यांमार में बौद्धों ने हिंसा का रास्ता क्यों अपनाया?
बौद्ध धर्म के शांतिपूर्ण स्वरूप से उग्र राष्ट्रवाद की ओर जाना, विशेषकर म्यांमार में, गहरी पहचान और अस्तित्व के संकट को दर्शाता है:
- ऐतिहासिक संदर्भ:
ब्रिटिश उपनिवेशवाद (1824–1948) के दौरान बड़ी संख्या में मुसलमान और भारतीय म्यांमार आए। स्वतंत्रता के बाद बौद्धों ने खुद को सांस्कृतिक खतरे में पाया। - रोहिंग्या संकट:
धार्मिक ध्रुवीकरण: रोहिंग्या मुसलमानों को 1982 के कानून के तहत नागरिकता से वंचित कर दिया गया। बौद्ध राष्ट्रवादियों ने उन्हें “विदेशी घुसपैठिए” बताया।
जातीय-धार्मिक राष्ट्रवाद: म्यांमार की पहचान बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई है। यह भय कि इस्लाम इस संतुलन को बिगाड़ सकता है, हिंसा का कारण बना।
राज्य समर्थन: सेना ने धार्मिक तनावों का फायदा उठाकर खुद को बौद्ध धर्म का रक्षक बताया।
- अहिंसा का विरोधाभास:
बौद्ध धर्म करुणा सिखाता है, लेकिन जब कोई समुदाय अस्तित्व के खतरे को महसूस करता है, तो हिंसक प्रतिक्रिया देना शुरू कर देता है। म्यांमार इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
प्रभाव: इस बदलाव ने वैश्विक निंदा को जन्म दिया, जिसने बौद्ध आदर्शों और मानवीय व्यवहार के बीच के अंतर को उजागर किया।
- बौद्ध धर्म के हाशिए पर जाने के कारण
बौद्ध धर्म के पतन के मुख्य कारण हैं:
- राजनीतिक संरक्षण की कमी: दक्षिण एशिया में बौद्ध धर्म राजाओं के संरक्षण में फला-फूला। जब शासक इस्लाम या हिंदू धर्म अपनाने लगे, तो बौद्ध धर्म कमजोर हो गया।
- अन्य धर्मों के साथ प्रतिस्पर्धा: बौद्ध धर्म के मठ-आधारित दृष्टिकोण ने इसे जनता से दूर कर दिया, जबकि इस्लाम और हिंदू धर्म ने जनसाधारण के लिए व्यावहारिक अनुष्ठान और परंपराएँ दीं।
- सांस्कृतिक विनाश: आक्रमणकारी सेनाओं ने बौद्ध संस्थानों को सांस्कृतिक और आर्थिक प्रतिरोध के प्रतीक मानकर नष्ट किया।
- जातीय-धार्मिक अस्तित्व: म्यांमार में यह अस्तित्व की भावना बौद्ध धर्म को उग्र रूप में ले आई।
शाँति और शक्ति का संघर्ष
अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन में बौद्ध धर्म का हाशिए पर जाना विजय, समावेशन और बदलती पहचान की कहानी है। दूसरी ओर, म्यांमार में बौद्धों की हिंसक प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि कैसे धार्मिक समुदाय, जो शांति में विश्वास रखते हैं, अस्तित्व के संकट के समय संघर्ष का रास्ता अपना सकते हैं।
बौद्ध धर्म का यह सफर — प्रकाश से पतन और फिर संघर्ष — हमें यह सिखाता है कि आध्यात्मिकता, राजनीति और मानव व्यवहार का गहरा संबंध है। अंततः यह धर्म नहीं, बल्कि मानवीय स्थिति होती है जो तय करती है कि शांति की जीत होगी या हिंसा की।