क्यों मां सती ने दिखाया भगवान शिव को अपना रौद्र रुप

देवी पुराण के अनुसार जब सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को निमंत्रित नहीं किया। यज्ञ के बारे में जान कर सती बिना निमंत्रण ही पिता के यज्ञ में जाने की जिद करने लगी। तब भगवान महादेव ने सती से कहा कि- “किसी भी शुभ कार्य में बिना बुलाए जाना और मृत्यु- ये दोनों ही एक समान है। मेरा अपमान करने की इच्छा से ही तुम्हारे पिता ये महायज्ञ कर रहे हैं। यदि ससुराल में अपमान होता है तो वहां जाना मृत्यु से भी बढ़कर होता है।”

देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव की ये बात सुनकर देवी सती बोलीं- “महादेव। आप वहां जाएं या नहीं। लेकिन मैं वहां अवश्य जाऊंगी। पिता के घर में महायज्ञ के महोत्सव का समाचार सुनकर कोई कन्या धैर्य रखकर अपने घर में कैसे रह सकती है।” देवी सती के ऐसा कहने पर शिवजी ने कहा- “मेरे रोकने पर भी तुम मेरी बात नहीं सुन रही हो। दुर्बुद्धि व्यक्ति स्वयं गलत कार्य कर दूसरे पर दोष लगाता है। अब मैंने जान लिया है कि तुम मेरे कहने में नहीं रह गई हो।” अत: अपनी रूचि के अनुसार तुम कुछ भी करो, मेरी आज्ञा की प्रतीक्षा क्यों कर रही हो।

See also  मकर संक्रांति के लिए तिल और गुड़ क्यों हैं महत्वपूर्ण?

जब महादेव ने यह बात कही तो सती क्षणभर के लिए सोचने लगीं कि शंकर ने पहले तो मुझे पत्नी रूप में प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की थी और अब ये मेरा अपमान कर रहे हैं, इसलिए अब मैं इन्हें अपना प्रभाव दिखाती हूं। यह सोचकर देवी सती ने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया। क्रोध से फड़कते हुए ओठों वाली तथा कालाग्नि के समान नेत्रों वाली उन भगवती सती को देखकर महादेव ने अपने नेत्र बंद कर लिए। भयानक दाढ़ों से युक्त मुखवाली भगवती ने अचानक उस समय अट्टाहस किया, जिसे सुनकर महादेव भयभीत हो गए। बड़ी कठिनाई से आंखों को खोलकर उन्होंने भगवती के इस भयानक रूप को देखा।

देवी भगवती के इस भयंकर रूप को देखकर भगवान शिव भय के मारे इधर-उधर भागने लगे। शिव को दौड़ते हुए देखकर देवी सती ने कहा-डरो मत-डरो मत। इस शब्द को सुनकर शिव अत्यधिक डर के मारे वहां एक क्षण भी नहीं रूके और बहुत तेजी से भागने लगे। इस प्रकार अपने स्वामी को भयभीत देख देवी भगवती अपने दस श्रेष्ठ रूप धारण कर सभी दिशाओं में स्थित हो गईं। महादेव जिस ओर भी भागते उस दिशा में वे भयंकर रूप वाली भगवती को ही देखते थे। तब भगवान शिव ने अपनी आंखें बंद कर ली और वहीं ठहर गए।

See also  संत रविदास के प्रसिद्ध विचार और उनका सामाजिक संदेश

जब भगवान शिव ने अपनी आंखें खोली तो उन्होंने अपने सामने भगवती काली को देखा। तब उन्होंने कहा- श्यामवर्ण वाली आप कौन हैं और मेरी प्राणप्रिया सती कहां चली गईं। तब देवी काली बोली- “क्या अपने सामने स्थित मुझ सती को आप नहीं देख रहे हैं। ये जो अलग-अलग दिशाओं में स्थित हैं ये मेरे ही रूप हैं। इनके नाम काली, तारा, लोकेशी, कमला, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, षोडशी, त्रिपुरसुंदरी, बगलामुखी, धूमावती और मातंगी हैं।”

देवी सती के ये वचन सुनकर शिवजी बोले- मैं आपको पूर्णा तथा पराप्रकृति के रूप में जान गया हूं। अत: अज्ञानवश आपको न जानते हुए मैंने जो कुछ कहा है, उसे क्षमा करें। ऐसा कहने पर देवी सती का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने महादेव से कहा कि- “यदि मेरे पिता दक्ष के यज्ञ में आपका अपमान हुआ तो मैं उस यज्ञ को पूर्ण नहीं होने दूंगी।” ऐसा कहकर देवी सती अपने पिता के यज्ञ में चली गईं।🙏🙏

See also  Ramadan: The Month of Fasting, Reflection, and Prayer

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 most Expensive cities in the World धरती आबा बिरसा मुंडा के कथन