राजस्थान, 30 अक्टूबर:
राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में आदिवासी समुदायों ने अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा पाने के लिए एकजुट होकर अपनी आवाज़ बुलंद की है। चूरू, झुंझुनू और सीकर जिलों के कई ब्लॉकों में बसे इन समुदायों का कहना है कि उन्हें अब तक वह संवैधानिक मान्यता नहीं मिली, जिसके वे सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से हकदार हैं।
हाल ही में सुजाँगढ़ में आयोजित एक जनसभा में बड़ी संख्या में आदिवासी प्रतिनिधि और सामाजिक संगठन शामिल हुए। सभा में वक्ताओं ने कहा कि इन क्षेत्रों के आदिवासी समाज को लंबे समय से सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन, शिक्षा की कमी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने प्रशासन से अपील की कि उनकी स्थिति और इतिहास को देखते हुए उन्हें ST सूची में शामिल किया जाए।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान पर आधारित मांग
सभा में समुदाय के प्रतिनिधियों ने बताया कि राजस्थान में नायक और भील समुदाय का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ता बहुत पुराना है। अन्य राज्यों में जहाँ इन समुदायों को पहले ही जनजातीय दर्जा दिया जा चुका है, वहीं राजस्थान में अभी तक उन्हें यह अधिकार नहीं मिला है। विशेष रूप से नायक समुदाय ने यह तर्क दिया कि उनकी परंपराएं, जीवनशैली और सामाजिक स्थिति भी जनजातीय समूहों के समान हैं, इसलिए उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाना चाहिए।
नायक समुदाय के प्रतिनिधियों ने यह भी बताया कि वे फिलहाल अनुसूचित जाति (SC) श्रेणी में शामिल हैं, लेकिन उनका सामाजिक ढांचा और सांस्कृतिक परंपराएं स्पष्ट रूप से जनजातीय समाज से मेल खाती हैं। उनका मानना है कि यदि उन्हें ST का दर्जा मिल जाता है, तो इससे उनकी शिक्षा, रोजगार और सामाजिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार होगा।
“हम सिर्फ अधिकार नहीं, पहचान की मांग कर रहे हैं”
सभा में वक्ताओं ने कहा कि उनकी यह मांग केवल आरक्षण पाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनकी सांस्कृतिक पहचान और अस्तित्व की रक्षा का प्रश्न है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने उनकी मांगों पर जल्द कदम नहीं उठाया, तो आगे बड़े आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
ST दर्जा मिलने के लाभ
ST दर्जा मिलने से समुदायों को सरकारी नौकरियों, शिक्षा संस्थानों और विभिन्न योजनाओं में आरक्षण का लाभ मिलता है। इससे उनके युवाओं के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, साथ ही सामाजिक समानता और सम्मान का रास्ता खुलता है। कई वक्ताओं ने कहा कि यह दर्जा उनके लिए “सम्मान, सुरक्षा और आत्मनिर्भरता” का प्रतीक बनेगा।
सरकारी प्रक्रिया और चुनौतियाँ
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ST सूची में किसी नए समुदाय को शामिल करना आसान नहीं है। इसके लिए केंद्र सरकार को कई मानदंडों का मूल्यांकन करना होता है—जैसे सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन, भौगोलिक अलगाव, पारंपरिक जीवनशैली और सांस्कृतिक विशिष्टता। यह प्रक्रिया अक्सर लंबी और जटिल होती है।
इसके अलावा, पहले से सूचीबद्ध जनजातियों में यह चिंता बनी रहती है कि नए समूहों के शामिल होने से उनके हिस्से का आरक्षण और संसाधन कम हो सकते हैं।
मुख्यधारा से अब भी दूर शेखावाटी का आदिवासी समाज
इस पूरी बहस ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि शेखावाटी क्षेत्र के आदिवासी समुदाय आज भी मुख्यधारा के विकास से क्यों वंचित हैं। वे अपने अधिकारों, सामाजिक पहचान और सम्मान के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। उनकी यह मांग सिर्फ संवैधानिक दर्जे की नहीं, बल्कि उनके जीवन, शिक्षा और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से गहराई से जुड़ी हुई है।
अंततः, यह आंदोलन इस बात का प्रतीक है कि शेखावाटी का आदिवासी समाज अब अपने अधिकारों के लिए संगठित हो चुका है—और जब तक उन्हें बराबरी की मान्यता नहीं मिलती, उनकी यह लड़ाई जारी रहेगी।





