By firstpeople.in
“जहां सरकारें चुप थीं, वहां मलती मुर्मू ने chalk उठा लिया।”
झारखंड और बंगाल के सीमांत पर बसे गांवों में कोई नया क्रांतिकारी आंदोलन नहीं हुआ। न ही कोई बड़ा राजनीतिक भाषण दिया गया। लेकिन एक महिला ने—अपने आंगन में, एक पेड़ के नीचे, अपने बच्चों और पड़ोस के बच्चों को बिठाकर—वह कर दिखाया, जो देश की सबसे बड़ी नीतियां भी नहीं कर सकीं।
उसका नाम है मलती मुर्मू।
🌱 शुरुआत उस जगह से, जहां स्कूल नहीं था
जिलिंगसेरेग, पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले में बसा एक छोटा आदिवासी गांव है। यहाँ संथाल समुदाय की बड़ी आबादी है। बिजली और मोबाइल नेटवर्क भले ही गांव तक पहुंच गए हों, लेकिन स्कूल और शिक्षक अब भी दूर की बात हैं।
जब मलती मुर्मू 2020 में इस गांव में ब्याह कर आईं, उन्होंने देखा कि आसपास के बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। कुछ बच्चे तो ये भी नहीं जानते थे कि ‘अ’ कैसे लिखा जाता है। पूछने पर जवाब मिलता—”स्कूल दूर है”, “पढ़ाई से क्या होगा”, “घर चलाना मुश्किल है।”
👣 जब इंतज़ार नहीं किया गया
मलती खुद अधिक पढ़ी-लिखी नहीं हैं। लेकिन उन्होंने तय किया कि अब और इंतज़ार नहीं किया जा सकता। उन्होंने अपने घर के सामने एक पेड़ के नीचे, ज़मीन पर बोरी बिछाकर पढ़ाना शुरू कर दिया।
शुरुआत केवल 3 बच्चों से हुई थी। आज ये संख्या 45 से अधिक हो गई है।
इनमें वे भी बच्चे शामिल हैं जिनके माता-पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, और जिनके पास कॉपी-किताबें खरीदने तक की हैसियत नहीं है।
🏠 घर ही बना स्कूल, माँ बनी शिक्षिका
मलती का स्कूल कोई बड़ी इमारत नहीं है।
यह एक कच्चा आंगन, मिट्टी की दीवारें, और टीन की छत वाला कमरा है।
वहीं दीवार पर एक ब्लैकबोर्ड टंगा है, और बच्चों के पास बैठने के लिए प्लास्टिक की चटाइयाँ।
बच्चों को वो हिंदी, बंगाली, अंग्रेजी और संथाली में अक्षर, गिनती, कहानी और नैतिक शिक्षा सिखाती हैं।
और सबसे बड़ी बात—ये सब कुछ वो मुफ्त में करती हैं।
उनके पास न तो कोई वेतन है, न ही सरकारी सहयोग।
👶 एक हाथ में बच्चा, दूसरे में chalk
एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें मलती मुर्मू अपने गोद में बच्चे को लिए हुए पढ़ा रही थीं।
यह सिर्फ एक तस्वीर नहीं थी, यह उस संघर्ष की प्रतीक थी—जहां मातृत्व, शिक्षा, सेवा और जिम्मेदारी एक साथ खड़े थे।
📢 समाज जागा, मदद आने लगी
जब यह कहानी कुछ स्थानीय पत्रकारों और सोशल मीडिया यूज़र्स तक पहुंची, तब लोगों ने स्वेच्छा से मदद भेजनी शुरू की।
किसी ने कॉपियां भेजीं
किसी ने ₹5000-₹20000 तक की आर्थिक सहायता की पेशकश की
कुछ लोगों ने NGO से जुड़ने की कोशिश की
लेकिन यह एक बार की मदद है। स्थायी परिवर्तन के लिए सिस्टम को नीति-निर्माण स्तर पर जागना होगा।
🔎 यह कहानी क्यों महत्वपूर्ण है?
- आदिवासी शिक्षा का संकट उजागर होता है
सरकारें आदिवासी विकास के नाम पर योजनाएं बनाती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत मलती जैसी कहानियों में दिखती है। - महिला नेतृत्व की मिसाल
बिना किसी औपचारिक डिग्री या ट्रेनिंग के, मलती जैसी महिलाएं समाज में गहरा बदलाव ला रही हैं। - शिक्षा का असली स्वरूप
शिक्षा सिर्फ किताबों में नहीं, जमीनी स्तर पर सामाजिक बदलाव में झलकती है।
🔚 लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है
मलती मुर्मू की कहानी कोई फिल्म नहीं, एक जीती-जागती मिसाल है। लेकिन इस कहानी का अंत तब होगा, जब—
हर गांव में एक स्कूल होगा
हर बच्चा शिक्षा का अधिकार पाएगा
ऐसी शिक्षिकाओं को सम्मान और सहायता मिलेगी
🙌 आप क्या कर सकते हैं?
“आपको कोई धन नहीं देना है। सिर्फ आवाज़ बनिए।”
✅ उनकी कहानी शेयर करें
✅ स्थानीय शिक्षा विभाग को ईमेल या पत्र लिखें
✅ NGOs और tribal education नेटवर्क से जोड़ें
✅ यदि आप शिक्षक या डिज़ाइनर हैं, तो शिक्षा सामग्री उपलब्ध कराएं
✅ उनके लिए एक स्थायी सहायता नेटवर्क की बात उठाएं