कांग्रेस ने दावा किया कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार राज्य के 40 प्रतिशत वनों के निजीकरण की तैयारी कर रही है। पार्टी ने आरोप लगाया कि यह कदम आदिवासियों को उनके पारंपरिक आवासों से बेदखल करने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है।
आदिवासी कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष विक्रांत भूरिया ने भाजपा पर आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करने और उनकी भूमि छीनने का आरोप लगाया। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “आदिवासी इस देश के मूल निवासी हैं और उनका इस भूमि पर सबसे अधिक अधिकार है। भारत में 12 करोड़ आदिवासी रहते हैं, लेकिन उन्हें उनके हक नहीं मिल रहे। भाजपा सरकार उनके अधिकार छीनने में लगी हुई है।”
उन्होंने आगे कहा कि पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम आदिवासी क्षेत्रों में स्वशासन को मजबूत करने के लिए बनाया गया था, ताकि ग्राम सभाओं को निर्णय लेने का अधिकार मिले। लेकिन मौजूदा सरकार आदिवासियों की सहमति के बिना निर्णय ले रही है।
भूरिया ने आरोप लगाया कि आदिवासी बहुल इलाकों में बड़े पैमाने पर खनन किया जा रहा है, जिससे न केवल उनकी जमीन छीनी जा रही है बल्कि विरोध करने वालों को जेल भेजा जा रहा है।
वन अधिकार अधिनियम का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासियों को वनों पर अधिकार दिया गया है और वे वन समितियों के माध्यम से जमीन का पट्टा प्राप्त कर सकते हैं। “लेकिन हकीकत यह है कि आदिवासियों को उनके अधिकार नहीं मिल रहे,” उन्होंने कहा।
भूरिया ने दावा किया कि सरकार निजीकरण को यह कहकर उचित ठहरा रही है कि ये वन नष्ट हो चुके हैं और उनके पुनर्विकास के लिए निजी कंपनियों को सौंपा जाएगा। लेकिन उन्होंने सवाल उठाया कि इन जंगलों में आदिवासियों के चारागाह और कृषि भूमि भी हैं, जिनका क्या होगा?
उन्होंने आरोप लगाया कि यह योजना आदिवासियों को जंगलों से विस्थापित करने की साजिश है। हालांकि, भाजपा की ओर से इन आरोपों पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।