संकट में लुगुबुरु घंटा बाड़ी धोरोम गाढ़, बचाने के लिए आदिवासियों ने निकाली रैली

लुगुबुरु घंटा बाड़ी धोरोम गाढ़, सभी आदिवासियों का एक धार्मिक धरोहर है। यह धार्मिक स्थल संकट में है। आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, परंपरा, धार्मिक और सामाजिक परंपरा की जड़ें लुगु पहाड़ व लुगूबुरु घंटाबाडी धोरोमगाढ़ से जुड़ी है. 

परियोजनाओं के नाम पर आदिवासी धरोहरों को समाप्त करने की कोशिश की जा रही है। आदिवासियों के धार्मिक स्थल को तबाह करने के लिए लुगुबुरु (लुगु पहाड़) पर केंद्रीय संस्था डीवीसी के द्वारा हाईडल पंप स्टोरेज पावर प्लांट प्रस्तावित है।

लुगुबुरु को बचाने के लिए 5 नवम्बर को आदिवासियों ने महाजुटान कर लंबी रैली निकाली। इसमें झारखंड, बंगाल व ओडिशा से हजारों आदिवासियों ने प्रोजेक्ट को रद्द करने की मांग की।

आदिवासियों ने इस महाजुटान के माध्यम से डीवीसी प्रबंधन और केंद्र सरकार को संदेश देने का काम किया है कि आदिवासियों के इस धार्मिक स्थल के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश नहीं की जाये. 

क्या है लुगूबुरु घंटाबाडी धोरोमगाढ़

झारखंड के बोकारो जिले के ललपनिया स्थित लुगुबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ संतालियों की धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा है। मान्यता है कि हजारों वर्ष पूर्व यहां लुगु बाबा की अध्यक्षता में संतालियों के जन्म से लेकर मृत्यु तक के रीति-रिवाज यानी संताली संविधान की रचना हुई थी।

See also  संथालों का सोहराय क्या है और क्यों मनाया जाता है

यह संतालियों की संस्कृति, परंपरा का उद्गम स्थल है। विभिन्न प्रदेशों से आगंतुक श्रद्धालु यहां पहुंचते ही मानो धन्य हो जाते हैं।

लुगुबुरु मार्ग में ऐसे कई चट्टान हैं, जिसे श्रद्धालु खरोच कर इसका अवशेष साथ ले जाते हैं। इससे संतालियों की लुगुबुरु के प्रति आस्था को समझा जा सकता है। संतालियों की हर विधि-विधान व अनुष्ठान में लुगुबुरु घांटाबाड़ी का बखान होता है।

12 साल चली बैठक और पूर्ण हुई संविधान रचना
जानकारों के मुताबिक, लाखों वर्ष पूर्व दरबार चट्टानी में लुगुबुरु की अध्यक्षता में संतालियों की 12 साल तक बैठक की गई। हालांकि संताली गीत में एक जगह गेलबार सिइंया, गेलबार इंदा यानि 12 दिन, 12 रात का भी जिक्र आता है। जिसके बाद संतालियों की गौरवशाली संस्कृति की रचना संपन्न हुई। इतने लंबे समय तक हुई इस बैठक में संतालियों ने इसी स्थान पर फसल उगायी और धान कूटने के लिये चट्टानों का इस्तेमाल किया। जिसके चिन्ह आज भी आधा दर्जन ओखल के स्वरूप में यहां मौजूद हैं।

See also  भगवान जगन्नाथ और आदिवासी समुदाय का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंध

सात देवी-देवताओं की होती है पूजा
दरबार चट्टानी स्थित पुनाय थान (मंदिर) में सबसे पहले मरांग बुरु और फिर लुगुबुरु, लुगु आयो, घांटाबाड़ी गो बाबा, कुड़ीकीन बुरु, कपसा बाबा व बीरा गोसाईं की पूजा की जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 most Expensive cities in the World धरती आबा बिरसा मुंडा के कथन