खेसारी लाल यादव: छपरा से राजनीति की नई पटकथा, बिहार चुनाव में क्यों बने सबसे चर्चित चेहरा

लेखक: firstpeople.in रिपोर्ट
तारीख: अक्टूबर 2025

भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव इन दिनों राजनीति के केंद्र में हैं। 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने उन्हें छपरा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है, और यही घोषणा इस चुनाव की सबसे चर्चित खबर बन गई।

जहां पहले यह मुकाबला परंपरागत राजनीतिक चेहरों तक सीमित माना जा रहा था, वहीं खेसारी लाल यादव के मैदान में उतरने से यह सीट अब बिहार की सबसे हाई-प्रोफाइल सीटों में शामिल हो गई है। सोशल मीडिया पर “खेसारी बनाम राजनीति” चर्चा का प्रमुख विषय है — और यह सवाल सबके ज़ेहन में है कि क्या एक फिल्म स्टार वाकई राजनीति में भी सफलता पा सकता है?

कौन हैं खेसारी लाल यादव?

खेसारी लाल यादव का असली नाम शत्रुघ्न कुमार यादव है। उनका जन्म सारण (छपरा) जिले के छोटे से गांव दिघवारा में हुआ था। गरीबी, संघर्ष और सीमित संसाधनों के बीच उन्होंने अपनी पहचान लोकगायक के रूप में बनानी शुरू की।

साल 2008-09 में उन्होंने भोजपुरी एल्बमों से प्रसिद्धि पाई, और फिर फिल्मों में कदम रखा।
उनकी पहली फिल्म “साजन चले ससुराल” ने उन्हें रातोंरात सुपरस्टार बना दिया। इसके बाद उन्होंने दर्जनों सुपरहिट फिल्में दीं — संग्राम, मेहंदी लगा के रखना, राजा, लिट्टी चोखा, और आशिक़ी जैसी फ़िल्मों ने उन्हें भोजपुरी इंडस्ट्री के शिखर पर पहुँचा दिया।

खेसारी की खासियत यह रही कि वे मंच, सिनेमा और लोकगीत — तीनों क्षेत्रों में समान रूप से लोकप्रिय रहे। गांवों और कस्बों में उनका प्रभाव सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन गया।

अब राजनीति में प्रवेश क्यों?

खेसारी लाल यादव का राजनीति में आना कोई आकस्मिक फैसला नहीं है।
कई सालों से वे सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बोलते रहे हैं — गरीबी, बेरोज़गारी, बिहार के युवाओं का पलायन, और भोजपुरी कलाकारों को लेकर सरकारी उदासीनता पर उन्होंने कई मंचों पर बयान दिए।

राजनीति में आने का उनका उद्देश्य — जैसा कि उन्होंने खुद मीडिया से कहा — “अपने इलाके के लोगों की आवाज़ को विधानसभा तक ले जाना” है।

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उन्होंने एक सभा में कहा था:

“मैं फिल्मों में जो किरदार निभाता हूँ, वो आम आदमी की पीड़ा होती है। अब मैं असली मंच पर उन्हीं लोगों की आवाज़ बनना चाहता हूँ। छपरा ने मुझे नाम दिया, अब मैं छपरा का कर्ज़ चुकाना चाहता हूँ।”

यह भावनात्मक अपील युवाओं और मजदूर वर्ग के बीच खूब असर डाल रही है।

किस पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं?

खेसारी लाल यादव राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के टिकट पर छपरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
यह सीट लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक गढ़ मानी जाती है। लालू ने 1977 में इसी क्षेत्र से पहली बार चुनाव जीता था।

आरजेडी की रणनीति साफ है —

छपरा में यादव, मुस्लिम, वैश्य और भूमिहार समुदायों की मजबूत उपस्थिति है।

RJD इस सामाजिक समीकरण में खेसारी की भोजपुरी पहचान और स्टार इमेज जोड़कर एक व्यापक गठजोड़ बनाना चाहती है।

पार्टी का लक्ष्य यह भी है कि पारंपरिक वोट बैंक से आगे बढ़कर युवा और सांस्कृतिक वोटरों को आकर्षित किया जाए।

राजद की यह चाल बिहार के चुनावी इतिहास में शायद पहली बार है जब किसी भोजपुरी कलाकार को सीधे विधानसभा प्रत्याशी बनाया गया है।

वर्तमान बयान और विवाद

खेसारी के खिलाफ विपक्ष लगातार यह आरोप लगा रहा है कि उनके कई पुराने गीत “अश्लील” थे और ऐसे कलाकार को राजनीति में लाना नैतिक रूप से गलत है।
इस पर उन्होंने एक सभा में जवाब दिया —

“मेरे गीत आम जनता की ज़िंदगी से जुड़े हैं। जो लोग मेरे गीतों को गंदा कहते हैं, वे उस समाज की सच्चाई से भाग रहे हैं। मैं बिहार का बेटा हूँ, गंदगी नहीं, सच्चाई दिखाता हूँ।”

इसके अलावा उन्होंने रवि किशन पर भी निशाना साधा, जिन्होंने बीजेपी से अपने भोजपुरी फिल्म करियर को राजनीति में बदला।
खेसारी ने कहा:

“रवि किशन मेरे बड़े भाई हैं, लेकिन वे जनता के बीच अब नहीं दिखते। मैं मंच पर रहूँ या राजनीति में, हमेशा लोगों के बीच रहूँगा।”

उनके इन बयानों से साफ झलकता है कि वे सिर्फ प्रचार के लिए नहीं, बल्कि वास्तविक मुकाबले के लिए मैदान में उतरे हैं।

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चुनावी प्रचार और जनसंपर्क

खेसारी लाल यादव के प्रचार की शैली भी उतनी ही चर्चित है जितनी उनकी फ़िल्में।

उनके समर्थकों ने उन्हें 200 लीटर दूध से नहलाया,

चांदी के सिक्कों से तौला,

और ट्रैक्टर रैली व लोकगीतों के माध्यम से प्रचार किया।

सोशल मीडिया पर उनके प्रचार के वीडियो लाखों बार देखे जा चुके हैं।
उनके प्रचार गीत — “छपरा बोले खेसारी जीतब जरूर” — टिकटॉक, रील्स और व्हाट्सएप ग्रुप्स में वायरल हैं।

इससे पता चलता है कि वे परंपरागत राजनीति के बजाय सांस्कृतिक भावनाओं को केंद्र में रखकर जनता से जुड़ रहे हैं।

चुनौती क्या हैं?

  1. अनुभव की कमी:
    राजनीति और अभिनय दो अलग दुनियाएँ हैं। लोकप्रियता को वोट में बदलना आसान नहीं।
    विपक्षी उम्मीदवार पहले से जमीनी संगठन से जुड़े हुए हैं।
  2. छपरा की जातीय जटिलता:
    इस सीट पर यादव, वैश्य, राजपूत और मुस्लिम मतदाता हैं — हर समुदाय का झुकाव अलग-अलग पार्टियों की ओर रहता है।
  3. विकास एजेंडा बनाम ग्लैमर:
    अगर खेसारी सिर्फ स्टार इमेज पर टिके रहे और स्थानीय समस्याओं (जैसे सड़क, रोजगार, शिक्षा) पर ठोस बात नहीं रख पाए, तो यह उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।

अगर खेसारी लाल यादव जीतते हैं तो क्या होगा?

  1. राजद की रणनीति को नई ताकत मिलेगी
    अगर वे जीतते हैं, तो यह साफ संदेश जाएगा कि “स्टार पावर + जमीनी संगठन” का मॉडल सफल है।
    इससे RJD भविष्य में और भोजपुरी या सांस्कृतिक चेहरों को चुनाव में उतार सकती है।
  2. भोजपुरी कलाकारों के लिए नया रास्ता खुलेगा
    खेसारी की जीत भोजपुरी इंडस्ट्री के अन्य कलाकारों के लिए प्रेरणा बनेगी कि वे सामाजिक नेतृत्व की भूमिका निभा सकते हैं।
  3. छपरा का राजनीतिक संतुलन बदलेगा
    यह सीट वर्षों से RJD और NDA के बीच झूलती रही है।
    खेसारी की जीत से RJD इस सीट को “स्थायी गढ़” में बदलने की दिशा में जा सकती है।
  4. राजद की युवा छवि को मजबूती मिलेगी
    बिहार में युवा मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
    खेसारी की लोकप्रियता खासकर 18-35 आयु वर्ग में है, जिससे पार्टी को राज्यव्यापी ब्रांड फायदा मिल सकता है।
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अगर वे हारते हैं तो क्या संदेश जाएगा?

यदि खेसारी लाल यादव हार जाते हैं, तो यह संदेश जाएगा कि सिर्फ लोकप्रियता और सोशल मीडिया शोर से राजनीति नहीं जीती जा सकती।
यह RJD के लिए एक सीख होगी कि जमीनी कैडर और क्षेत्रीय मुद्दों पर पकड़ अभी भी सबसे महत्वपूर्ण है।

हालांकि, हारने के बावजूद उनकी उपस्थिति ने चुनावी बहस का फोकस पूरी तरह बदल दिया है —
अब यह चुनाव सिर्फ “जाति बनाम विकास” नहीं बल्कि “संस्कृति बनाम सत्ता” के विमर्श में भी प्रवेश कर चुका है।

RJD को कितना फायदा होगा?

सीट स्तर पर:
छपरा जैसी प्रतिष्ठित सीट पर स्टार उम्मीदवार उतारना पार्टी के लिए चुनावी लाभ का प्रतीक है।
चाहे जीत हो या हार, RJD का जनसंपर्क दायरा बढ़ा है।

राज्य स्तर पर:
खेसारी जैसे चेहरों से पार्टी को युवा वर्ग, प्रवासी मजदूरों और सांस्कृतिक समाज में नई पहचान मिली है।

राजनीतिक प्रतीकवाद:
यह दिखाता है कि RJD अब पारंपरिक जातीय राजनीति से आगे बढ़कर सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व को भी महत्व देने लगी है — जो भविष्य के लिए एक नया राजनीतिक मॉडल बन सकता है।

खेसारी लाल यादव का छपरा से चुनाव लड़ना बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय है।
यह सिर्फ एक अभिनेता का चुनाव नहीं बल्कि लोकप्रिय संस्कृति और जनराजनीति का मिलन है।

उनका अभियान उस सोच का प्रतीक है जिसमें लोकगीत, सिनेमा और समाज — तीनों एक साथ जनता की आवाज़ बन रहे हैं।

अगर खेसारी जीतते हैं, तो यह बिहार की राजनीति के लिए नई दिशा तय करेगा —
जहाँ कला और राजनीति साथ चलेंगे।
और अगर हारते भी हैं, तब भी उन्होंने यह साबित कर दिया है कि भोजपुरी समाज अब सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतना का भी केंद्र बन चुका है।


संपादकीय टिप्पणी:

“खेसारी लाल यादव की राजनीति में एंट्री ने यह दिखाया है कि लोकतंत्र में हर मंच, हर आवाज़ मायने रखती है — चाहे वह मंच फिल्मी हो या राजनीतिक।”

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