सिनगी दई बचपन से ही चंचल, निडर और बलशाली थीं। उनकी बुद्धिमत्ता भी असाधारण थी, जिसके कारण वे अपने पिता, राजा रूईदास, के राजकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। कई बार राजा उनसे गुप्त सलाह-मशवरा करते, जिसे सिर्फ बाप-बेटी ही जानते थे। हालांकि, रानी (सिनगी की मां) इसे अनुचित मानती थीं और अक्सर राजा से कहतीं, “यह खेलने-कूदने की उम्र है, इसे राजकाज में मत उलझाइए।” लेकिन राजा को अपनी बेटी की क्षमताओं पर पूरा विश्वास था।
एक बहादुर राजकुमारी
सिनगी दई घुड़सवारी में माहिर थीं। उनकी सहेली कइली, जो राज्य के सेनापति की बेटी थी, उनके साथ पुरुष वेश में लंबी घुड़सवारी पर जातीं। इस दौरान वे राज्य की सुरक्षा का भी आकलन करतीं, यह सुनिश्चित करतीं कि कोई घुसपैठिया या शत्रु राज्य में प्रवेश न कर सके।
रोहतासगढ़ पर लगातार हमले
रोहतासगढ़ का किला अपनी अजेयता के लिए प्रसिद्ध था। पड़ोसी राज्यों—चेरो, खेरवार, और अन्य—ने कई बार इसे जीतने का प्रयास किया, लेकिन हर बार पराजित हुए। जब उन्हें एहसास हुआ कि अकेले हमला करना व्यर्थ है, तो उन्होंने मिलकर हमला करने की योजना बनाई।
इस बीच, एक ग्वालिन, जो रोज़ रोहतासगढ़ से पड़ोसी राज्यों में दूध लेकर जाती थी, दुश्मनों के लिए सूत्रधार बन गई। उसने बताया कि “विशु सेन्दरा” के दौरान सभी पुरुष जंगल में शिकार के लिए जाते हैं और राज्य में केवल महिलाएं रह जाती हैं। इस जानकारी ने दुश्मनों को बड़ा अवसर दिया।
महिला योद्धाओं की विजय
जब विशु सेन्दरा का समय आया और सभी पुरुष जंगल में गए, तो पड़ोसी राजाओं ने हमला कर दिया। लेकिन सिनगी दई सतर्क थीं। उन्होंने महिलाओं को पुरुष वेश में संगठित किया और दुश्मनों से डटकर मुकाबला किया। इस युद्ध में सिनगी और कइली के नेतृत्व में महिलाओं ने तीन बार शत्रुओं को हराया।
जब दुश्मनों को एहसास हुआ कि वे वास्तव में महिलाओं से हार रहे हैं, तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने चौथी बार हमला किया—इस बार पूरी तैयारी के साथ।
रोहतासगढ़ का पतन और पलायन
अचानक हुए इस हमले के कारण सिनगी दई को पुरुषों को सूचित करने का समय नहीं मिला। उन्होंने समझ लिया कि अब मुकाबला करना असंभव है और महिलाओं को सुरक्षित निकालना ही उचित होगा। गुप्त रास्तों से वे जंगल की ओर बढ़ीं। इस पलायन में समूह दो भागों में बंट गया—एक झारखंड के छोटानागपुर पठार की ओर गया और दूसरा राजमहल की पहाड़ियों की ओर।
रात के अंधेरे में, जब वे सुरक्षित ठिकाने की तलाश में थे, तो उन्हें करम का वृक्ष और एक विशाल गुफा दिखी। करम वृक्ष उरांव समाज का आराध्य है, इसलिए उन्होंने इसे शुभ संकेत मानते हुए वहां आश्रय लिया।
प्राकृतिक सुरक्षा और परंपरा का जन्म
दुश्मनों ने पीछा किया, लेकिन घने जंगल और सिनगी दई की रणनीति ने उन्हें चकमा दे दिया। प्रकृति ने भी उरांव समुदाय की रक्षा की। आज भी, रोहतासगढ़ के पास करम के प्राचीन वृक्ष खड़े हैं, जो इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी हैं।
इस महान योद्धा की स्मृति में उरांव समाज हर 12 वर्षों में “मुक्का सेन्दरा” (जनी शिकार) का आयोजन करता है, जिसमें महिलाएं शिकार कर वीरांगना सिनगी दई को श्रद्धांजलि देती हैं।