भारत की चुनावी प्रणाली की विश्वसनीयता मतदाताओं और राजनीतिक दलों के विश्वास पर निर्भर करती है। लेकिन हाल के वर्षों में चुनाव आयोग (ECI) को विभिन्न चुनावी प्रवृत्तियों को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है—कभी बढ़ा-चढ़ाकर, तो कभी उचित रूप से। 2024 के राज्य विधानसभा चुनावों के बाद मतदाता पंजीकरण में विसंगतियों को लेकर नई चिंताएँ सामने आई हैं, जिससे चुनावी पारदर्शिता पर सवाल उठने लगे हैं।
मतदाता विसंगतियाँ और चुनावी विश्वसनीयता
ताजा मुद्दा यह है कि लोकसभा चुनाव और बाद में हुए राज्य विधानसभा चुनावों के बीच मतदाताओं की संख्या में अचानक तेज वृद्धि देखी गई। कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि कैसे महाराष्ट्र में महज छह महीनों में 48 लाख नए मतदाता जुड़ गए। द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चुनावी चक्रों की तुलना में ऐसी असमानताएँ असामान्य नहीं हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने अभी तक इस वृद्धि पर संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया है।
मतदाता संख्या में इस भारी वृद्धि के अलावा, एक और चिंताजनक खुलासा यह हुआ है कि अलग-अलग मतदाताओं को समान EPIC (Electors Photo Identification Card) नंबर आवंटित किए गए हैं। इससे मतदाता दोहराव और संभावित चुनावी धांधली की आशंकाएँ बढ़ गई हैं। तृणमूल कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाते हुए पूछा है कि ऐसी अनियमितताओं को कैसे अनुमति दी गई, जिससे भारत की मतदाता पंजीकरण प्रणाली की साख पर सवाल उठने लगे हैं।
चुनावी हेरफेर का खतरा
यह चिंता केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनीतिक भी है। यदि मतदाता सूची या EPIC नंबर की विसंगतियों के कारण मतदाता विभिन्न राज्यों में मतदान कर सकते हैं, तो यह चुनावों की निष्पक्षता को खतरे में डाल सकता है। चुनाव आयोग यह दावा करता है कि वह सख्त सत्यापन प्रक्रियाओं का पालन करता है, लेकिन हालिया घटनाक्रम इस प्रणाली में गंभीर खामियों की ओर इशारा करते हैं।
चुनावी सुधारों को मजबूत करने की आवश्यकता
जनता का विश्वास बहाल करने के लिए चुनाव आयोग को तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने होंगे:
- मतदाता पंजीकरण में पारदर्शिता: मतदाता सूची में पाई गई विसंगतियों पर स्पष्ट और सार्वजनिक स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए।
- मजबूत सत्यापन प्रक्रिया: दोहराए गए EPIC नंबरों को समाप्त करना प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि किसी भी तरह की धांधली की संभावना न रहे।
- नियमित ऑडिट और सार्वजनिक निगरानी: मतदाता सूची के स्वतंत्र ऑडिट से अनियमितताओं की पहचान और सुधार किया जा सकता है।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और चुनावी प्रक्रिया पर किसी भी तरह का संदेह लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर सकता है। निष्पक्ष और विश्वसनीय मतदाता पंजीकरण प्रणाली सुनिश्चित करना न केवल प्रशासनिक जिम्मेदारी है, बल्कि यह राष्ट्र के लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूत करने के लिए भी आवश्यक है।