असम सरकार ने राज्य के छह प्रमुख जातीय समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने संबंधी हाई-लेवल कमेटी की रिपोर्ट को मंज़ूरी दे दी है। यह निर्णय विधानसभा चुनाव से पहले सरकार के महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है, जिसका व्यापक सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव हो सकता है।
सरकार ने इस रिपोर्ट को केंद्र को भेजने का निर्णय लिया है, जिसके आधार पर आगे की प्रक्रिया—संसदीय संशोधन और राष्ट्रपति की अधिसूचना—पूरी की जाएगी।
कौन-कौन से समुदायों को ST दर्जा देने की सिफारिश?
छह समुदाय हैं:
- मोरोन (Moran)
- मुटक (Motok)
- चुटिया (Chutia)
- कौच-राजबोंग्शी (Koch-Rajbongshi)
- ताइव (Tai Ahom / Ahom)
- टी-जनजातियाँ (Tea Tribes / Adivasi)
— संथाल, उरांव, मुंडा, खड़िया आदि समेत 90 लाख से अधिक चाय बागान मजदूर समुदाय
इनमें से अहोम, चुटिया, मोरोन, मोटक और राजबोंग्शी असम की जातीय राजनीति में लंबे समय से ST दर्जे की मांग कर रहे थे।
वहीं टी-जनजातियों को ST सूची में शामिल करने की प्रक्रिया पिछले दो दशकों से लंबित थी।
ST दर्जा मिलने से इन समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- आरक्षण और नौकरियों में लाभ
ST दर्जा मिलने पर ये समुदाय
सरकारी नौकरियों,
शैक्षणिक संस्थानों,
स्कॉलरशिप,
और विशेष विकास योजनाओं
में आरक्षण के दायरे में आ जाएंगे।
- सामाजिक-आर्थिक उन्नति की संभावना
विशेषकर टी-जनजातियों को अत्यधिक गरीबी, स्वास्थ्य असमानता और मजदूरी-शोषण से निकलने में राहत मिल सकती है।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ेगा
ST कोटे में आरक्षित विधानसभा और लोकसभा सीटों पर इन समुदायों की राजनीतिक भागीदारी बढ़ सकती है।
मौजूदा ST समुदायों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
असम में पहले से मौजूद ST समूहों में शामिल हैं —
बोडो, मिसिंग, कार्बी, डिमासा, लालुंग (Tiwa), राभा, गारो, हजोंग, आदि।
मुख्य चिंताएँ:
आरक्षण कोटे में हिस्सेदारी बँटेगी, जिससे मौजूदा ST समुदायों का लाभ कम हो सकता है।
राजनीतिक दलों के लिए ST सीटों का पुनर्संरचना (delimitation) भी विवाद का कारण बन सकता है।
कुछ जनजातियाँ इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान और संसाधनों पर संभावित दबाव के रूप में देख रही हैं।
हालाँकि सरकार का कहना है कि
“किसी भी मौजूदा ST समुदाय के आरक्षण प्रतिशत को कम नहीं किया जाएगा।”
सरकार का इरादा: चुनाव से पहले बड़ा जनाधार मजबूत करने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषक इसे सीधे-सीधे 2026 असम विधानसभा चुनाव और 2029 लोकसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं।
- 6 बड़े समुदायों को साधना
ये छह समूह मिलकर राज्य की आबादी का लगभग 35–38% हिस्सा हैं।
विशेषकर अहोम और टी-जनजातियाँ—दोनों ही BJP और विपक्ष के लिए निर्णायक वोट बैंक हैं।
- चाय बागान मजदूरों के लिए विशेष आकर्षण
राज्य की लगभग 45 विधानसभा सीटें टी-जनजाति मतदाताओं के प्रभाव में आती हैं।
ST दर्जा का वादा कई सालों से चुनावी मुद्दा रहा है।
अब कैबिनेट की मंजूरी को “पॉलिटिकल डिलीवरी” के रूप में प्रचारित किया जा सकता है।
- असम की पहचान की राजनीति में हस्तक्षेप
असम की राजनीतिक परिस्थिति में “मूलनिवासी बनाम बाहरी” का विमर्श गहरा है।
ST दर्जा देने से सरकार “son of the soil” narrative को मजबूत करती दिख रही है।
- विपक्ष की कटु आलोचना को राजनीतिक जवाब
कांग्रेस और AASU लंबे समय से इस मुद्दे पर सरकार पर टालमटोल का आरोप लगा रहे थे।
कैबिनेट निर्णय BJP के लिए एक मजबूत ‘election talking point’ साबित हो सकता है।
आगे की प्रक्रिया क्या है?
रिपोर्ट को मंज़ूरी के बाद सरकार इसे
केंद्र सरकार को भेजेगी,
फिर संविधान की ST सूची में संशोधन के लिए
लोकसभा,
राज्यसभा,
और राष्ट्रपति की मंजूरी
की आवश्यकता होगी।
केंद्र में BJP की सरकार होने के कारण प्रक्रिया तेज़ होने की संभावना जताई जा रही है।
असम सरकार का यह कदम सिर्फ प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि गंभीर जनसांख्यिकीय, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभावों वाला कदम है।
जहाँ छह समुदायों के लिए यह ऐतिहासिक अवसर बन सकता है, वहीं मौजूदा ST समूहों में इससे चिंता भी बढ़ सकती है।
और सबसे महत्वपूर्ण—
यह फैसला आने वाले चुनावों में सत्ता समीकरणों को सीधा प्रभावित करेगा।





