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अराकू कॉफी बनी विश्व ब्रांड: आदिवासी किसानों की मेहनत को मिला ‘चेंजमेकर ऑफ़ द ईयर 2025’ सम्मान

आंध्र प्रदेश के मान्यम क्षेत्र की शान अराकू कॉफी को राष्ट्रीय स्तर पर ‘चेंजमेकर ऑफ़ द ईयर 2025’ का सम्मान मिला है। यह उपलब्धि न केवल एक ब्रांड की सफलता की कहानी है, बल्कि आदिवासी किसानों की मेहनत, आत्मनिर्भरता और पहचान की गूंज भी है।

गिरिजन सहकारी निगम (GCC) की प्रबंध निदेशक कल्पना कुमारी, जिन्होंने इस उपलब्धि में केंद्रीय भूमिका निभाई है, ने कहा कि यह पुरस्कार वर्षों की मेहनत, दूरदर्शी योजना और जमीनी स्तर पर कार्यरत अधिकारियों की लगन का परिणाम है।

“कॉफी, शहद, हल्दी, इमली, साबुन या शर्बत – मान्यम के उत्पाद कभी भी मूल्य के अनुसार पहचाने नहीं गए,” उन्होंने कहा। “पहले बिचौलिए इन्हें औने-पौने दामों पर खरीद लेते थे। लेकिन 1956 में जीसीसी की स्थापना के बाद हालात बदलने लगे, और अब आदिवासी उत्पादक अपनी मेहनत का उचित मूल्य पा रहे हैं।”

कुमारी की प्रेरक यात्रा

दिल्ली में जन्मीं और पली-बढ़ीं कल्पना कुमारी ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद एक निजी बैंक में प्रोबेशनरी अधिकारी के रूप में काम किया। लेकिन समाज में बदलाव लाने की इच्छा ने उन्हें सिविल सेवा की ओर प्रेरित किया।

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कल्पना कुमारी


“चौथे प्रयास में मैं आईएएस बनी,” उन्होंने मुस्कराते हुए कहा। “मेरे पति मयूर अशोक भी आईएएस हैं, और वर्तमान में विशाखापत्तनम जिले के संयुक्त कलेक्टर के रूप में कार्यरत हैं। हमने अपने बड़ों की सहमति से प्रेम विवाह किया था। हम दोनों 2018 बैच के हैं।”

कॉफी व्यापार में क्रांतिकारी सुधार

जीसीसी की जिम्मेदारी संभालने के बाद कल्पना कुमारी ने कॉफी खरीद प्रणाली में बड़े सुधार किए।
पहले पूरे साल एक तय मूल्य पर कॉफी खरीदी जाती थी, जिससे किसानों को सीमित लाभ मिलता था। उन्होंने विभिन्न किस्मों के लिए गतिशील मूल्य निर्धारण (Dynamic Pricing) की व्यवस्था शुरू की — ताकि हर किसान को उसकी गुणवत्ता और मेहनत का सही दाम मिल सके।

“पहले निजी व्यापारी नकद अग्रिम देकर किसानों की पूरी फसल पर कब्जा कर लेते थे,” उन्होंने बताया। “अब हमने ऐसी व्यवस्था बनाई है कि जब भी किसान अपनी कॉफी लेकर जीसीसी में आए, उसे बढ़े हुए दाम पर बिक्री का अवसर मिले।”

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साथ ही उन्होंने ब्रांडिंग, मार्केटिंग और पैकेजिंग को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया — जिससे अराकू कॉफी अब वैश्विक बाजारों में अपनी जगह बना चुकी है।

आर्थिक सशक्तिकरण और नई फसलें

पिछले वर्ष केंद्र सरकार की योजना के तहत 135 वन धन विकास केंद्र स्थापित किए गए हैं।
इससे न केवल कॉफी बल्कि शहद, हल्दी, इमली जैसे अन्य उत्पादों की प्रोसेसिंग और बिक्री भी बढ़ी है।
इसके साथ ही, किसानों को काली मिर्च की अंतर-फसल (intercropping) के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय प्राप्त हो रही है।

वैश्विक मंच पर आदिवासी उत्पाद

जीसीसी ने TRIFED (भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ लिमिटेड) के साथ मिलकर विदेशों में भारतीय जनजातीय उत्पादों को बेचने और भारतभर में खुदरा शोरूम खोलने की दिशा में समझौते किए हैं।

टाटा समूह भी अराकू कॉफी की ब्रांडिंग और मार्केटिंग में साझेदार बन चुका है।
वर्तमान में 6,000 एकड़ से अधिक भूमि पर जैविक कॉफी की खेती हो रही है, जिसे अगले वर्ष 10,000 एकड़ तक बढ़ाने की योजना है।

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ऑनलाइन बिक्री को बढ़ावा देने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं, ताकि विश्वभर के उपभोक्ता सीधे मान्यम की धरती से जुड़ सकें।

“यह सम्मान सबका है”

कल्पना कुमारी ने कहा,

“यह सम्मान सिर्फ मेरा नहीं है, बल्कि उन सभी अधिकारियों, कर्मचारियों और फील्ड स्टाफ का है जिन्होंने आदिवासी उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए दिन-रात मेहनत की। यह सम्मान हर उस किसान का है जिसने भरोसे और उम्मीद के साथ अपनी फसल जीसीसी को सौंपी।”


अराकू कॉफी सिर्फ एक पेय नहीं रही — यह अब भारत की आदिवासी पहचान, स्थानीय आत्मनिर्भरता और सतत विकास की कहानी बन चुकी है। मान्यम की मिट्टी से उठी यह खुशबू अब पूरे विश्व में फैल रही है।

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