रांची, झारखंड — झारखंड के गोड्डा जिले में पूर्व भाजपा नेता और आदिवासी समाज के प्रभावशाली चेहरे सूर्या नारायण हांसदा की पुलिस मुठभेड़ में मौत ने राज्य की राजनीति और सामाजिक माहौल में भूचाल ला दिया है।
पुलिस का दावा है कि हांसदा नक्सलियों को हथियार पहुंचाने जा रहे थे और मुठभेड़ के दौरान मारे गए। लेकिन परिजनों और कई राजनीतिक नेताओं का आरोप है कि यह फर्जी मुठभेड़ थी और उन्हें पहले से हिरासत में लेकर योजनाबद्ध तरीके से मार दिया गया।
घटना का विवरण
पुलिस के मुताबिक, हांसदा के खिलाफ 24 आपराधिक मामले दर्ज थे और वे लंबे समय से फरार थे। गुप्त सूचना पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने उनका पीछा किया, जहां मुठभेड़ में उनकी मौत हो गई।
परिजनों का कहना है कि हांसदा बीमार थे, भागने की स्थिति में नहीं थे, और पुलिस पहले से उन्हें हिरासत में लेकर हत्या की योजना बना चुकी थी। उनकी मां और पत्नी ने शव लेने से भी इनकार किया।
नेताओं की प्रतिक्रियाएँ
- अर्जुन मुंडा (पूर्व केंद्रीय मंत्री):
“जब वे चार बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके थे और खुलेआम समाज में सक्रिय थे, तो अचानक इस तरह की कार्रवाई सवाल खड़े करती है। यह आदिवासी आवाज़ को दबाने का प्रयास लगता है।” - बाबूलाल मरांडी (भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष):
उन्होंने इसे “ठंडे खून से की गई हत्या” बताते हुए कहा कि मामले की जांच सीबीआई या हाईकोर्ट के सिटिंग जज से कराई जानी चाहिए।
मानवाधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया
अधिवक्ता संत कुमार घोष ने इस घटना की शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) में दर्ज कराई है। उनका कहना है कि गिरफ्तारी और मुठभेड़ अलग-अलग स्थानों पर हुई, जिससे पुलिस की कहानी पर संदेह होता है।
NHRC ने इस मामले को दर्ज कर लिया है और प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है।
झारखंड में बढ़ते फर्जी मुठभेड़ों के मामले
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार:
- 2018–2023 के बीच झारखंड में 40+ संदिग्ध मुठभेड़ों में मौत हुई।
- इनमें 60% से अधिक पीड़ित आदिवासी समुदाय से थे।
- कई मामलों में जांच से पता चला कि पीड़ित निर्दोष थे।
राज्य और राष्ट्रीय स्तर के आंकड़े
झारखंड
- 2009–2013: NHRC में झारखंड से 30 मुठभेड़ों की शिकायत दर्ज हुई।
- 2016–2022: कुल 52 मुठभेड़ों की घटनाएँ दर्ज हुईं
भारत
- 2002–2008: NHRC में 440 मुठभेड़ों की शिकायतें आईं।
- 2015 (SC/ST अधिनियम): 38,510 मामलों में से लगभग 8,900 को “false or mistake of fact or law” पाया गया।
- 2019: राजस्थान में SC मामलों के 51% और ST मामलों के 50% जांच में फर्जी पाए गए।
क्यों है यह चिंता का विषय
- मानवाधिकार हनन: फर्जी मुठभेड़ संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- विश्वास की कमी: पुलिस और आदिवासी समाज के बीच भरोसे की खाई बढ़ती है।
- जवाबदेही का अभाव: दोषियों को सजा न मिलने से घटनाएँ दोहराई जाती हैं।
विशेषज्ञों की राय
मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि स्वतंत्र न्यायिक जांच, पारदर्शी प्रक्रिया और सुरक्षा बलों के लिए संवेदनशीलता प्रशिक्षण जरूरी है।
आदिवासी संगठनों का मानना है कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व और मीडिया में उनकी आवाज़ मजबूत होने तक ऐसे मामलों पर रोक लगाना मुश्किल है।
सूर्या नारायण हांसदा की मौत सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं, बल्कि आदिवासी समुदाय के उस लंबे संघर्ष का हिस्सा है जो न्याय, सुरक्षा और सम्मान के लिए वर्षों से चल रहा है।
यदि निष्पक्ष जांच और कार्रवाई नहीं हुई, तो यह न्याय की हार और अविश्वास की गहराई दोनों को बढ़ा देगा।