प्रसिद्ध समाजसेवी और पद्मश्री सम्मानित सिमोन उरांव इन दिनों गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। 2016 में जब जल संरक्षण कार्यों के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान मिला, तो उनकी उपलब्धियों की चर्चा भारत से लेकर विदेशों तक हुई। कई डॉक्यूमेंट्री और फिल्में उन पर बनीं। दूरदर्शन ने उनकी कहानी ‘झरिया’ नाम से प्रसारित की, और एक ब्रिटिश कंपनी ने भी उनके जीवन और जल संरक्षण कार्यों पर डॉक्यूमेंट्री बनाई। शोधकर्ताओं और पत्रकारों का तांता उनके पास लगा रहता था।
लेकिन आज 90 वर्षीय सिमोन उरांव उपेक्षा के शिकार हैं। तीन साल पहले लकवे (पैरालिसिस) के कारण वे बिस्तर पर पड़ गए, और अब उनकी पेंशन और राशन की सुविधा भी बंद कर दी गई है। पड़हा राजा के रूप में उन्हें सरकार से 1000 रुपये की पेंशन मिलती थी, लेकिन वह भी महीनों से रुकी हुई है।
गांव में जल क्रांति लाने वाले सिमोन उरांव
1934 में झारखंड के बेड़ों प्रखंड के खक्सी टोली में जन्मे सिमोन उरांव ने किशोरावस्था में ही जल संरक्षण की दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाए। उन्होंने झरिया नाला में गायघाट प्राइवेट बांध बनाकर गांव की सिंचाई व्यवस्था को बदल दिया। उनके प्रयासों से पहले जहां सिर्फ धान की एक फसल होती थी, वहीं बाद में गेहूं और सब्जियों की खेती भी होने लगी। उनकी जल संरचनाओं को देखकर बड़े-बड़े इंजीनियर भी हैरान रह जाते थे। बाद में सरकार ने इस क्षेत्र में देसावली डैम का निर्माण कराया।
बीमार सिमोन उरांव, मदद के बिना लाचार
2022 में यूनाइटेड बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन ने उन्हें एक पक्का मकान बनाकर दिया था, लेकिन अब इलाज के लिए भी पैसे नहीं हैं।
बेटे सुधीर उरांव ने बताया कि 2022 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के बाद उन्हें लकवा मार गया। 20 दिन तक रिम्स (RIMS) में भर्ती रहने के बावजूद उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। इसके बाद वे घर लौट आए और तब से वही हालात बने हुए हैं। राज्यपाल, मंत्री और विधायक उनसे मिलने तो आए, लेकिन किसी ने आर्थिक मदद नहीं की।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य डॉ. आशा लकड़ा ने की पहल
सोमवार को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की सदस्य डॉ. आशा लकड़ा ने बेड़ो स्थित उनके पैतृक आवास पर जाकर उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली। इस दौरान उन्होंने प्रखंड स्तरीय अधिकारियों से बातचीत कर यह पता लगाया कि सिमोन उरांव की पेंशन और खाद्य सुरक्षा योजना के तहत मिलने वाला राशन बंद कर दिया गया है।

इस पर डॉ. लकड़ा ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे जल्द से जल्द उनकी पेंशन और राशन की सुविधा बहाल करें। अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि 5 मार्च तक सभी सुविधाएं पुनः उपलब्ध करा दी जाएंगी।
एक जल योद्धा की उपेक्षा, समाज के लिए सवाल
जिस व्यक्ति ने सैकड़ों किसानों की जिंदगी बदली, वही सिमोन उरांव आज अपने इलाज और दैनिक जरूरतों के लिए मोहताज हैं। यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि समाज और सरकार की संवेदनशीलता का भी सवाल है।