भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय में बसी खासी जनजाति दुनिया की उन गिनी-चुनी जनजातियों में से एक है, जो आज भी मातृसत्तात्मक व्यवस्था (Matrilineal system) का पालन करती है। इस व्यवस्था में न केवल संपत्ति की उत्तराधिकार प्रणाली माँ की ओर से चलती है, बल्कि परिवार में निर्णयों का केंद्र भी महिलाएँ होती हैं।
मातृसत्तात्मक बनाम मातृवंशीय
⚠️ ध्यान देने योग्य है कि खासी समाज मातृसत्तात्मक (matriarchal) कम और मातृवंशीय (matrilineal) अधिक है।
यानी—सत्ता पूरी तरह महिलाओं के हाथ में नहीं होती, लेकिन वंश, नाम और संपत्ति महिलाओं से चलती है।
खासी समाज की प्रमुख विशेषताएं
- वंश परंपरा
- बच्चे माँ की वंश-रेखा को आगे बढ़ाते हैं।
- परिवार का नाम, गोत्र और पहचान माँ से मिलती है।
- सबसे छोटी बेटी (Khun Khadduh)
- परिवार की संपत्ति की उत्तराधिकारी होती है।
- माता-पिता की मृत्यु के बाद वही संपत्ति, घर और जिम्मेदारियों की देखभाल करती है।
- पति का स्थान
- शादी के बाद पति, पत्नी के घर में रहता है।
- पति को अक्सर सीमित अधिकार मिलते हैं, जिससे कुछ खासी पुरुषों ने ‘पुरुष अधिकार आंदोलन’ भी शुरू किया है।
- विवाह और संबंध
- समाज में प्रेम विवाह, तलाक और पुनर्विवाह को सहज रूप से स्वीकारा जाता है।
- महिला को पुरुष से अलग होने की स्वतंत्रता अधिक है।
- संपत्ति और ज़िम्मेदारी
- जमीन, घर, खेत—सब खासी महिलाओं के नाम पर होते हैं।
- परिवार के बुजुर्ग निर्णयों में पुरुषों की भूमिका होती है, लेकिन उत्तराधिकार में नहीं।
धार्मिक और सांस्कृतिक पक्ष
- खासी धर्म (Seng Khasi और Niam Khasi) में भी महिला को आदरणीय स्थान मिला है।
- जीवन और प्रकृति की पूजा—जिसमें ‘Ka Mei Ram-ew’ यानी ‘धरती माँ’ को पूजनीय माना जाता है—मातृ प्रधान संस्कृति को मजबूत करती है।
आलोचना और आधुनिक बहसें
- कई खासी पुरुषों ने इसे ‘पुरुषों के अधिकारों का हनन’ कहा है।
- “Syngkhong Rympei Thymmai” जैसे संगठन पुरुष अधिकारों की बहाली के लिए काम कर रहे हैं।
- पढ़ाई-लिखाई और नौकरी की दुनिया में पुरुषों की भागीदारी बढ़ रही है, जिससे सामाजिक संतुलन में बदलाव आ रहा है।
विश्व में अद्वितीय उदाहरण
- खासी समाज के साथ-साथ गारो और जैंतिया जनजातियाँ भी मातृवंशीय हैं।
- विश्व में ऐसे समाज बहुत कम हैं—जैसे अफ्रीका में मिननंका, चीन में मोसुओ, और इंडोनेशिया में मिनांगकबाउ।
खासी जनजातियों की मातृसत्तात्मक या कहें मातृवंशीय व्यवस्था न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए एक अनूठा उदाहरण है, जहाँ महिलाओं को पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का केंद्र माना गया है। हालांकि समय के साथ सामाजिक बदलाव आ रहे हैं, फिर भी यह परंपरा आज भी गर्व के साथ जीवित है।