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जादूगोड़ा की पीड़ा से जापान तक: आशीष बिरुली की रेडिएशन फोटोग्राफी ने हिला दिया विश्व

झारखंड के जादूगोड़ा का नाम शायद बहुतों ने यूरेनियम खनन के कारण सुना हो, लेकिन वहां के लोगों की ज़िंदगी की त्रासदी को दुनिया तक पहुँचाने का काम एक स्थानीय युवा फोटोग्राफर आशीष बिरुली ने किया है। हाल ही में उनकी फोटोग्राफी प्रदर्शनी जापान में आयोजित हुई, जिसने वैश्विक स्तर पर विकिरण (Radiation) और यूरेनियम खनन से जुड़ी मानवीय समस्याओं को नई रोशनी में रखा।

जादूगोड़ा और रेडिएशन की सच्चाई

जादूगोड़ा, झारखंड का एक छोटा इलाका, 1967 से यूरेनियम कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (UCIL) के नियंत्रण में खनन कार्यों का केंद्र रहा है।
इस इलाके के लोग दशकों से रेडिएशन के प्रभावों से जूझ रहे हैं —

बच्चों में जन्मजात विकृतियाँ,

कैंसर जैसी बीमारियाँ,

और पर्यावरणीय प्रदूषण।

फिर भी, इन मुद्दों पर न तो पर्याप्त सरकारी ध्यान दिया गया, न ही कोई ठोस वैकल्पिक नीति बनी।

आशीष बिरुली की फोटोग्राफी: एक दस्तावेज़, एक प्रतिरोध

आशीष बिरुली स्वयं जादूगोड़ा के निवासी हैं। उन्होंने देखा कि किस तरह उनके समुदाय के लोग खनन के कारण धीरे-धीरे बीमारियों और गरीबी के शिकार हो रहे हैं। इसी अनुभव को उन्होंने कैमरे में कैद करना शुरू किया।

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उनकी तस्वीरें न केवल दस्तावेज़ हैं, बल्कि प्रतिकार (Resistance) का रूप भी हैं।
उनका कहना है —

“हमारे लोग दशकों से मर रहे हैं, लेकिन सरकारें खामोश हैं। मैं चाहता हूँ कि दुनिया हमारी आँखों से यह सब देखे।”

जापान में प्रदर्शनी: “World Nuclear Victims Forum”

2025 में जापान में आयोजित World Nuclear Victims Forum में आशीष बिरुली ने अपनी रेडिएशन फोटोग्राफी प्रस्तुत की।
यह प्रदर्शनी हिरोशिमा और फुकुशिमा जैसी त्रासदियों से गुज़रे जापान के लोगों के बीच रखी गई, जिन्होंने खुद परमाणु आपदा का दर्द झेला है।

प्रदर्शनी में जादूगोड़ा के वे चेहरे थे —

बीमार बच्चे,

खनन से दूषित नदियाँ,

और माताओं की पीड़ा,
जो यूरेनियम खदानों के पास रहने वाले लोगों की वास्तविकता बयान करते हैं।

इन तस्वीरों को देखकर जापान में उपस्थित लोगों ने कहा कि भारत जैसे देश में आज भी परमाणु विकास के नाम पर आदिवासी समुदायों की ज़िंदगी खतरे में डाली जा रही है।

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अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

आशीष बिरुली की इस पहल को अंतरराष्ट्रीय मीडिया और पर्यावरण संगठनों ने सराहा।
कई मानवाधिकार समूहों ने कहा कि यह प्रदर्शनी वैश्विक परमाणु नीतियों पर पुनर्विचार की मांग करती है।
उनकी फोटोग्राफी अब “Nuclear-Free Network” जैसे संगठनों द्वारा प्रलेखित की जा रही है ताकि यूरेनियम माइनिंग के सामाजिक और पारिस्थितिक प्रभावों को दुनिया के सामने रखा जा सके।

आदिवासी दृष्टिकोण से पर्यावरण न्याय

जादूगोड़ा केवल एक पर्यावरणीय संकट नहीं है, बल्कि यह आदिवासी अस्तित्व पर सीधा हमला है।
यहाँ की जमीन, पानी और जंगल आदिवासियों की जीविका और संस्कृति का केंद्र हैं।
आशीष की तस्वीरें बताती हैं कि किस तरह “विकास” की आड़ में उनकी धरती और जीवन दोनों विषाक्त बना दिए गए हैं।

उनकी कला एक आदिवासी दृष्टिकोण से पर्यावरण न्याय (Environmental Justice) की मांग करती है।

आशीष बिरुली की फोटोग्राफी केवल तस्वीरें नहीं हैं — वे सवाल हैं, जो हमारे समाज और शासन की संवेदनहीनता को उजागर करते हैं।
जापान में उनकी प्रदर्शनी ने यह साबित कर दिया कि जादूगोड़ा जैसे छोटे इलाकों की आवाज़ भी अब वैश्विक मंचों तक पहुँच रही है।

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उनकी कोशिश न केवल एक कलाकार का कार्य है, बल्कि यह एक समुदाय की जीवित कहानी है — जो रेडिएशन के साए में भी इंसानियत और प्रतिरोध की मशाल जलाए हुए है।

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