राजस्थान का करौली-धौलपुर इलाका प्राकृतिक खूबसूरती, ऐतिहासिक धरोहरों और उपजाऊ ज़मीन के लिए जाना जाता है। यमुना और चंबल के बीच बसा यह इलाका सांस्कृतिक रूप से भी बेहद समृद्ध है। इसी इलाके में प्रस्तावित है डूंगरी बांध परियोजना – एक ऐसी योजना जिसे सरकार “विकास और जल प्रबंधन” के बड़े कदम के रूप में पेश कर रही है।
लेकिन, सवाल यह है कि क्या यह विकास वास्तव में लोगों के लिए है, या फिर यह विस्थापन और जीवन-यापन के संकट की ओर बढ़ा रहा है?
डूंगरी बांध परियोजना: क्या है योजना?
- प्रस्तावित डूंगरी बांध करौली ज़िले की पहाड़ियों के बीच बनाया जाना है।
- परियोजना का उद्देश्य बताया जा रहा है – सिंचाई, पेयजल आपूर्ति और जल संरक्षण।
- आधिकारिक तौर पर दावा है कि यह बांध आसपास के क्षेत्रों को सूखे से राहत देगा और किसानों को फायदा पहुंचाएगा।
कितना इलाका डूबेगा?
- परियोजना से लगभग 76 गाँव प्रभावित होंगे।
- अनुमानित 8,500 से 10,000 हेक्टेयर भूमि डूब क्षेत्र में जाएगी।
- इसमें सिर्फ खेती की ज़मीन ही नहीं, बल्कि घर, खेत, बाग़-बगीचे, प्राचीन मंदिर और ऐतिहासिक स्थल भी शामिल हैं।
- प्रभावित आबादी का अनुमान: 70,000 से अधिक लोग सीधे या परोक्ष रूप से विस्थापित होंगे।
लोगों का विरोध क्यों?
- पूर्वजों की ज़मीन और धरोहर
गाँव के लोगों का कहना है कि यह ज़मीन उनकी पहचान और इतिहास से जुड़ी हुई है। यहाँ सदियों पुराने मंदिर और सांस्कृतिक स्थल हैं। डूब क्षेत्र में कई ऐसे स्मारक हैं जिनका दस्तावेजीकरण तक नहीं हुआ है। - बिना सहमति परियोजना
स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह योजना बिना उनकी पूर्व सहमति और उचित जानकारी के आगे बढ़ाई गई है। ग्राम सभाओं से औपचारिक अनुमति नहीं ली गई। - रोज़गार और आजीविका पर संकट
अधिकतर परिवार खेती और पशुपालन पर निर्भर हैं। ज़मीन डूबने से उनका आर्थिक आधार छिन जाएगा। - पुनर्वास और मुआवज़े की अस्पष्टता
अभी तक सरकार ने साफ नहीं किया कि लोगों को कहाँ बसाया जाएगा, कितना मुआवज़ा दिया जाएगा और उनकी आजीविका की भरपाई कैसे होगी।
“बांध नहीं बनने देंगे” – जनता की आवाज़
गांव के लोगों का कहना है:
- “हमारे पूर्वजों की मिट्टी और मंदिर को पानी में नहीं डूबने देंगे।”
- “चाहे जान चली जाए, लेकिन डूंगरी बांध बनने नहीं देंगे।”
- “हमें विकास चाहिए, लेकिन ऐसा विकास नहीं जो हमें ही उजाड़ दे।”
स्थानीय किसान और महिलाएँ लगातार धरना-प्रदर्शन कर रही हैं। उनका मानना है कि यह बांध उनके लिए ‘विकास’ नहीं, बल्कि ‘विस्थापन’ का प्रतीक बन जाएगा।
संसद में उठा मुद्दा
करौली-धौलपुर से सांसद भजनलाल जाटव ने संसद में इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया। उन्होंने कहा:
“मेरे संसदीय क्षेत्र करौली-धौलपुर में सरकार डूंगरी बांध बनाने जा रही है। वहां के तकरीबन 76 गांवों में लोगों के घर, संस्कृति और प्राचीन मंदिर मौजूद हैं। यह परियोजना बिना स्थानीय सहमति आगे बढ़ रही है। आम जनता को इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा। मैं सरकार से निवेदन करता हूं कि डूंगरी बांध योजना को निरस्त कर जनता को राहत दी जाए।”
उनकी इस बात से साफ है कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों तक को आशंका है कि यह परियोजना अधिक नुकसानदेह साबित होगी।
पर्यावरणीय और सामाजिक पहलू
- वन्यजीव पर असर: यह इलाका कई दुर्लभ प्रजातियों और जैव विविधता का घर है। बांध बनने से पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा असर पड़ेगा।
- जल प्रबंधन पर सवाल: विशेषज्ञ मानते हैं कि राजस्थान में बड़े बांध अक्सर अपेक्षित सिंचाई लाभ नहीं दे पाए हैं।
- सांस्कृतिक विरासत का नुकसान: सैकड़ों साल पुराने मंदिर, धार्मिक स्थल और स्मारक हमेशा के लिए पानी में डूब जाएंगे।
सरकार का पक्ष
राज्य सरकार और जल संसाधन विभाग का कहना है:
- परियोजना का मकसद है जल संकट को दूर करना और कृषि को मजबूत करना।
- डूंगरी बांध से हजारों किसानों को लाभ मिलेगा।
- प्रभावित लोगों के लिए पुनर्वास योजना तैयार की जा रही है।
हालांकि, अभी तक इसका विस्तृत खाका सार्वजनिक नहीं किया गया है, जिससे संदेह और गहराता जा रहा है।
विकास बनाम विस्थापन – बड़ी बहस
यह विवाद सिर्फ करौली-धौलपुर तक सीमित नहीं है। भारत के कई हिस्सों में विकास योजनाएँ स्थानीय लोगों के विस्थापन का कारण बनी हैं –
- नर्मदा घाटी
- पोलावरम बांध
- टिहरी बांध
हर जगह सवाल यही रहा कि क्या विकास का बोझ हमेशा गरीब और ग्रामीण समुदायों पर ही डाला जाएगा?
डूंगरी बांध परियोजना राजस्थान के लिए पानी और सिंचाई की नई उम्मीद के रूप में पेश की जा रही है। लेकिन, इसके साथ ही यह हज़ारों लोगों की आजीविका, संस्कृति और विरासत को डुबोने वाली त्रासदी भी बन सकती है।
सरकार के सामने अब सबसे बड़ा सवाल है –
क्या वह लोगों की सहमति और अधिकारों का सम्मान करते हुए कोई समाधान निकालेगी, या फिर यह योजना एक और उदाहरण बनेगी जहाँ “विकास” की कीमत विस्थापन और सामाजिक अन्याय से चुकाई गई?