Headlines

डॉ. रतनचंद्र कर: वह डॉक्टर जिसने जारवा जनजाति को मौत के मुंह से वापस लाया

अगर डॉ. रतनचंद्र कर न होते, तो आज अंडमान द्वीपसमूह की जारवा जनजाति शायद इतिहास का एक अध्याय बन चुकी होती।
1990 के दशक की शुरुआत में, एक रहस्यमयी बीमारी ने इस छोटी-सी जनजाति को अपनी चपेट में ले लिया था।
बुखार, उल्टी, और तेज़ संक्रमण से जारवा लोग मरने लगे।
कभी लगभग 80 की आबादी तक सिमट चुकी यह जनजाति extinction यानी पूर्ण समाप्ति की स्थिति में पहुँच गई थी।

तभी अंडमान के एक युवा डॉक्टर — डॉ. रतनचंद्र कर — ने जंगलों की गहराइयों में कदम रखा।
उनका मिशन था — इन लोगों को बचाना, जो न तो आधुनिक दवाइयों को जानते थे, न बाहरी दुनिया पर भरोसा करते थे।

कौन हैं जारवा जनजाति?

जारवा भारत की सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक मानी जाती है।
वे अंडमान द्वीपसमूह के पश्चिमी हिस्से में बसे हुए हैं और माना जाता है कि वे करीब 60,000 साल पहले अफ्रीका से यहाँ पहुँचे मानव समूहों के वंशज हैं।

उनकी आबादी आज लगभग 300–400 के बीच है, लेकिन 1990 के दशक में यह संख्या घटकर 70–80 तक रह गई थी।
जारवा लोग शिकार, मछली पकड़ने और फल-सब्ज़ियों पर आधारित जीवन जीते हैं।
वे बाहरी दुनिया से बहुत कम संपर्क में रहते हैं और आज भी पाषाण युग जैसी सादगी से जीवन बिताते हैं।

See also  “You invaded our land first”: Immigration Protests and the Voice of Australia’s First People

जीवन और विश्वास

जारवा लोग प्रकृति को ही अपना देवता मानते हैं।
उनका धर्म किसी देवता की मूर्ति पर नहीं, बल्कि जंगल, समुद्र, जानवर और पेड़ों पर केंद्रित है।
उनका मानना है कि हर पेड़ और नदी में आत्मा बसती है।
वे बीमारियों को भी कभी-कभी “बुरी आत्माओं” का प्रभाव मानते थे।

उनका इलाज पारंपरिक जड़ी-बूटियों से होता था।
अगर कोई बहुत बीमार पड़ता, तो उसे कभी-कभी जंगल में छोड़ दिया जाता ताकि उसकी आत्मा “प्रकृति में लौट सके।”
यही कारण था कि जब डॉक्टर कर ने पहली बार दवाइयाँ लेकर पहुँचे, तो जारवा लोगों ने उन्हें “जादूगर” समझा — और डर गए।

बाहरी लोगों से डर क्यों?

जारवा जनजाति सदियों से बाहरी हमलों और बीमारियों से परेशान रही है।
ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान भी, अंडमान के कई हिस्सों में बसे मूल निवासियों को या तो जबरन हटाया गया या ग़ुलाम बनाया गया।
जारवा इस इतिहास से भयभीत थे।
इसलिए जब कोई बाहरी व्यक्ति उनके इलाके में जाता, तो वे तीर–धनुष से हमला कर देते।
उनका डर अंधविश्वास नहीं था, बल्कि सदियों की पीड़ा का परिणाम था।

See also  Top 10 Tribal Superfoods: Ancient Nutrition Secrets for Modern Health

डॉ. रतनचंद्र कर की चुनौती

डॉ. कर को जब पहली बार सरकारी मिशन पर भेजा गया, तो जारवा लोगों ने उन्हें मारने की धमकी दी।
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
वो कई दिनों तक जारवा इलाकों के पास बैठते, फल और भोजन छोड़ते, ताकि वे समझें कि यह आदमी खतरा नहीं है।

धीरे-धीरे एक दिन कुछ जारवा बच्चे पास आए।
कर ने उन्हें खिलाया, हँसाया — और यही था पहला “संपर्क।”

फिर उन्होंने जारवा भाषा सीखनी शुरू की, ताकि बातचीत हो सके।
उन्होंने जंगल में ही अस्थायी मेडिकल कैंप बनाए, और बीमार जारवा लोगों का इलाज शुरू किया।

एक बार खसरा और मलेरिया ने फिर से जारवा बस्तियों में कहर मचा दिया।
कर ने रात-दिन मेहनत की, जंगलों में घूम-घूमकर दवा दी।
उन्होंने केवल शरीर नहीं, बल्कि मन का डर भी दूर किया।

जब विश्वास लौटा

कुछ ही वर्षों में, जारवा जनजाति ने डॉक्टर कर को “अपना व्यक्ति” मान लिया।
वे उन्हें “डॉ. कर बाबा” कहकर बुलाने लगे।
कई बार जारवा महिलाएँ खुद अपने बच्चों को लेकर उनके पास आतीं।

See also  Understanding Sohrai of the Santhals: Significance and Celebration

उन्होंने न केवल इलाज किया, बल्कि जारवा संस्कृति का भी दस्तावेज़ीकरण किया —
ताकि आने वाली पीढ़ियाँ समझ सकें कि यह जनजाति कितनी अनोखी और महत्वपूर्ण है।

आज की स्थिति: एक जनजाति का पुनर्जन्म

डॉ. रतनचंद्र कर के प्रयासों के बाद आज जारवा जनजाति की जनसंख्या तीन गुना बढ़ चुकी है।
जहाँ पहले यह समुदाय विलुप्ति की कगार पर था, अब वह जीवित और सशक्त है।

सरकार ने जारवा रिजर्व क्षेत्र को पूरी तरह संरक्षित घोषित किया है।
यहाँ बाहरी लोगों की एंट्री पर सख्त रोक है।
जारवा लोग अब भी अपनी पारंपरिक जीवनशैली में खुश हैं, और बीमार पड़ने पर खुद डॉक्टर कर को याद करते हैं —
जो अब उनके लिए किसी देवता से कम नहीं।

डॉ. रतनचंद्र कर ने दिखाया कि चिकित्सा केवल शरीर की नहीं, विश्वास की भी होती है।
उन्होंने यह साबित किया कि किसी जनजाति की रक्षा केवल कानून से नहीं, बल्कि सम्मान और संवेदना से की जा सकती है।

जारवा जनजाति आज भी जंगलों में है, लेकिन उनका अस्तित्व अब सुरक्षित है —
क्योंकि एक डॉक्टर ने “मनुष्य” को केवल मरीज नहीं, बल्कि मानव संस्कृति की आखिरी कड़ी के रूप में देखा।

10 most Expensive cities in the World धरती आबा बिरसा मुंडा के कथन