सुहानी कोल: बिचरपुर की आदिवासी बेटी जो संघर्ष से उठकर जर्मनी के फुटबॉल मैदान तक पहुँची

मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बिचरपुर गाँव की 15 वर्षीय आदिवासी लड़की सुहानी कोल आज पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई हैं।
जिस बच्ची ने बहुत छोटी उम्र में परिवार, सुरक्षा और सहारा सब कुछ खो दिया था, वही आज अपनी मेहनत और लगन के बल पर जर्मनी में फुटबॉल प्रशिक्षण के लिए जा रही है।

सुहानी की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं — इसमें दर्द है, अकेलापन है, लेकिन सबसे ज्यादा है हिम्मत, मेहनत और उम्मीद की चमक

कठिन बचपन और संघर्ष की शुरुआत

सिर्फ छह साल की उम्र में सुहानी के पिता की हत्या कर दी गई थी।
यह उनके जीवन का सबसे बड़ा आघात था। इस दर्द के बाद हालात और भी कठिन हो गए — परिवार वालों ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया।
यहाँ तक कि उनकी माँ भी उन्हें छोड़कर चली गईं।

ऐसे में उनकी दादी और नानी ने ही उनका पालन-पोषण किया।
आर्थिक तंगी के बावजूद दोनों ने सुहानी को न सिर्फ संभाला, बल्कि उनके सपनों को जिंदा रखा।

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फुटबॉल बना सहारा

मुश्किल परिस्थितियों में भी सुहानी ने हार नहीं मानी।
उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ फुटबॉल खेलना शुरू किया। उनका गाँव बिचरपुर, जिसे लोग ‘मिनी ब्राजील’ के नाम से जानते हैं, फुटबॉल प्रेमियों से भरा हुआ है।
सुहानी रोज मैदान में उतरतीं, प्रैक्टिस करतीं, और जल्द ही स्कूल व जिला स्तर के कई टूर्नामेंटों में गोलकीपर के रूप में अपनी पहचान बनाने लगीं।

धीरे-धीरे कोचों की नजर उन पर पड़ी, और उनकी प्रतिभा को पहचान मिलनी शुरू हुई।

जर्मनी तक पहुँची मेहनत

अब सुहानी की मेहनत रंग लाई है। उन्हें जर्मनी के प्रसिद्ध फुटबॉल क्लब FC Ingolstadt 04 में प्रशिक्षण के लिए चुना गया है।
यह प्रशिक्षण 4 से 12 अक्टूबर तक चलेगा।

सुहानी अकेली नहीं जा रही हैं — उनके साथ सानिया कुशवाहा, प्रीतम कुमार, मनीष घासिया और विरेंद्र बाइगा भी चुने गए हैं।
इन सभी खिलाड़ियों को जर्मनी में पूर्व खिलाड़ी और कोच डिटमार बियर्सडॉरफर प्रशिक्षण देंगे।

सरकार और समाज का सहयोग

मध्य प्रदेश सरकार ने भी इन खिलाड़ियों की मदद की है।
खेल विभाग ने इन्हें दिल्ली से जर्मनी तक भेजने की व्यवस्था की है और ₹50,000 मूल्य की स्पोर्ट्स किट भी दी है, जिसमें जूते, ड्रेस और अन्य जरूरी सामान शामिल हैं ताकि विदेश में किसी चीज की कमी महसूस न हो।

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पिता की याद और नई प्रेरणा

सुहानी कहती हैं,

“मैं अपने पिता को रोज याद करती हूँ। जब भी मन टूटता है, फुटबॉल मुझे संभालता है। इसी खेल ने मुझे जीने की वजह दी है।”

वह चाहती हैं कि उनके गाँव की और भी लड़कियाँ फुटबॉल खेलें और अपने सपनों को साकार करें। उनके लिए यह मौका सिर्फ उपलब्धि नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी और प्रेरणा है।

प्रधानमंत्री तक पहुँची कहानी

सुहानी और बिचरपुर गाँव की यह कहानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम तक पहुँची, जहाँ उन्होंने गाँव की फुटबॉल प्रतिभा की सराहना की थी।
इसी के बाद इन बच्चों की तरफ देशभर का ध्यान गया — और अब ये बच्चे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का नाम रोशन करने जा रहे हैं।

सुहानी कोल की यह यात्रा बताती है कि चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों,
अगर जिद और जुनून कायम रहे — तो एक छोटे से गाँव की लड़की भी जर्मनी के मैदान तक अपनी पहचान बना सकती है।

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