आज जब दुनिया महिला सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की बात कर रही है, तब छत्तीसगढ़ की एक साधारण-सी लड़की, आभा कुजूर, असाधारण संकल्प और संघर्ष से न केवल महिला शक्ति का प्रतीक बनीं, बल्कि उन्होंने यह साबित कर दिया कि मजबूत इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत के सामने कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। एक आदिवासी परिवार की बेटी होकर भी उन्होंने न सिर्फ पारंपरिक सोच को तोड़ा, बल्कि बॉडीबिल्डिंग जैसे पुरुष-प्रधान खेल में अपनी पहचान बनाई।
शुरुआत: एक छोटे से गांव से बड़ी उड़ान तक
आभा कुजूर का जन्म छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में हुआ। एक आदिवासी समुदाय से आने वाली आभा का बचपन संघर्षपूर्ण रहा। आर्थिक संसाधनों की कमी, समाज की पारंपरिक सोच और महिलाओं को खेलों में लेकर बनी रुढ़िवादी मानसिकता—इन सभी का सामना उन्हें करना पड़ा। मगर इन सबके बीच उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
उनकी माँ उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा थीं। आभा बताती हैं कि उन्होंने अपनी माँ से वादा किया था कि वह एक दिन ‘मिस छत्तीसगढ़’ बनकर दिखाएंगी। दुर्भाग्य से यह वादा उन्होंने अपनी माँ की मृत्यु से ठीक पहले किया था, और इस वादे ने उन्हें भीतर से इतना मजबूत कर दिया कि उन्होंने हर कठिनाई को अपने संकल्प से कुचल दिया।
पहला कदम: जब हार ने सिखाया जीत का असली मतलब
आभा ने कोलकाता में अपनी पहली प्रतियोगिता में भाग लिया। लेकिन न अनुभव था, न ही ट्रेनिंग की सही दिशा। वे वहां हार गईं। लेकिन यह हार उन्हें तोड़ने की बजाय सीख बन गई। उन्होंने वापस आकर दिन-रात मेहनत करना शुरू कर दिया। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, फिर भी उन्होंने स्थानीय जिम में खुद को निखारना शुरू किया।
उनकी दिनचर्या में रोजाना लगभग 3 घंटे का वर्कआउट शामिल था—2 घंटे स्ट्रेंथ ट्रेनिंग और 1 घंटा कार्डियो। उन्होंने शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन और विटामिन लेना भी शुरू किया, जो एक बॉडीबिल्डर के लिए जरूरी होता है। इन सबके लिए उन्होंने कई बार आर्थिक तंगी भी सही, लेकिन पीछे नहीं हटीं।
सपने को आकार मिलना: ‘मिस छत्तीसगढ़’ की जीत
2023 में उन्होंने वह कर दिखाया जो उन्होंने अपनी माँ से वादा किया था। रायपुर में आयोजित छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उन्होंने ‘मिस फिजीक’, ‘मिस स्वीम सूट’, और ‘महिला बॉडीबिल्डिंग’ की कैटेगरी में पहला स्थान हासिल किया और ‘मिस छत्तीसगढ़’ का ताज उनके सिर पर सजा। यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं थी—यह एक आदिवासी लड़की के आत्मसम्मान, दृढ़ संकल्प और मेहनत की पहचान थी।
राष्ट्रीय स्तर की उड़ान: ओवरऑल चैंपियन का खिताब
2025 की शुरुआत में पुणे में आयोजित ‘नेशनल सूर्या क्लासिक बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप’ में आभा ने पूरे भारत से आए 21 प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए ‘ओवरऑल चैंपियन’ का खिताब अपने नाम किया। प्रतियोगिता में वे सबसे कम कद की महिला थीं, लेकिन उनके आत्मविश्वास और फिजीक ने जजों को प्रभावित किया।
यह जीत इसलिए भी खास थी क्योंकि यह एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता थी जहाँ आभा ने साबित कर दिया कि प्रतिभा को पहचान बनाने के लिए किसी महानगर से आना ज़रूरी नहीं, ज़रूरी है जुनून, समर्पण और लक्ष्य के प्रति निष्ठा।
संघर्षों की परछाइयाँ: आर्थिक तंगी और सामाजिक बाधाएँ
उनकी इस यात्रा में कई बाधाएँ थीं—खासतौर पर आर्थिक। बॉडीबिल्डिंग एक महंगा खेल है जिसमें सप्लीमेंट्स, डाइट, ट्रेनर, कपड़े, प्रतियोगिता शुल्क—सब कुछ पैसे मांगता है। आभा को कई बार अपनी छोटी-सी नौकरी या स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग देकर पैसे इकट्ठे करने पड़े।
सामाजिक बाधाएँ भी कम नहीं थीं। एक आदिवासी महिला को छोटे कपड़ों में मंच पर खड़ा देखकर समाज की आलोचना भी झेलनी पड़ी। कई बार उन्हें अपने ही समुदाय के लोगों से सुनना पड़ा कि यह आदिवासी संस्कृति के विरुद्ध है। लेकिन उन्होंने यह भी दिखाया कि महिला की गरिमा उसके कपड़ों से नहीं, उसके आत्मबल से तय होती है।
नारी शक्ति का सम्मान: IBC24 शक्ति सम्मान
उनकी कड़ी मेहनत और उपलब्धियों को पहचान मिली जब उन्हें 2025 में IBC24 के ‘नारी शक्ति सम्मान’ से सम्मानित किया गया। यह सम्मान छत्तीसगढ़ की उन महिलाओं को दिया जाता है जिन्होंने समाज में नई दिशा दिखाई हो। आभा आज युवतियों के लिए रोल मॉडल बन चुकी हैं।
भविष्य की उड़ान: इंटरनेशनल स्टेज की तैयारी
अब उनका लक्ष्य है – ‘शेरू क्लासिक इंटरनेशनल प्रतियोगिता’ और NPC नेशनल चैंपियनशिप जैसे बड़े मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करना। इसके लिए वे खुद को अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से तैयार कर रही हैं। उन्हें अब सरकार और स्पॉन्सर्स से सहयोग की जरूरत है ताकि उनकी तरह और भी बेटियाँ आगे बढ़ सकें।
एक आदिवासी पहचान की प्रेरणा
आभा कुजूर की कहानी केवल एक बॉडीबिल्डर की नहीं, बल्कि एक आदिवासी महिला के सांस्कृतिक संघर्ष और आत्मसम्मान की लड़ाई की भी कहानी है। जहाँ देश में आदिवासी महिलाओं को आज भी कई बार हाशिए पर रखा जाता है, वहीं आभा ने अपने समुदाय का नाम ऊँचा किया है।
वे यह भी दिखाती हैं कि आदिवासी लड़कियाँ सिर्फ जंगल, खेत, या घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं—वे मंच पर भी चमक सकती हैं, स्पोर्ट्स में भी परचम लहरा सकती हैं, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बन सकती हैं।
आभा कुजूर सिर्फ एक नाम नहीं है, बल्कि एक प्रेरणा का प्रतीक है। वह कहती हैं,
“अगर आप ठान लें, तो कोई भी चीज़ असंभव नहीं होती। मैंने माँ से जो वादा किया था, वह निभाया। अब देश के लिए कुछ बड़ा करना चाहती हूँ।”
उनकी यह कहानी आज की हर बेटी को यह विश्वास देती है कि अगर सपनों के पीछे जुनून हो, तो ज़मीन चाहे कितनी भी कठोर हो—वह बीज एक दिन फूल बनकर ज़रूर खिलेगा।
अगर आपके पास है एक सपना — तो याद रखिए:
“जितनी बड़ी चुनौती, उतनी बड़ी उड़ान!”