झारखंड में PESA नियमावली को मिली मंज़ूरी — ग्राम सभा को व्यापक अधिकार

रांची, 23–24 दिसंबर 2025:

झारखंड सरकार ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए पंचायती राज (Extension to Scheduled Areas) एक्ट — PESA (1996) की नियमावली को मंजूरी दे दी है, जिससे राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों (Scheduled Areas) में ग्राम सभाओं का अधिकार और सशक्त होगा। यह फैसला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में मंगलवार को मंत्रिपरिषद की बैठक में लिया गया।

फैसले का मुख्य सार

PESA के तहत ग्राम सभाओं को अब स्थानीय संसाधनों, भूमि अधिग्रहण, खनन, जल संसाधनों, और छोटे वन उत्पादों पर निर्णायक भूमिका निभाने का अधिकार मिलेगा।

नियमावली को कैबिनेट ने सर्वसम्मति से मंजूर किया, जिसमें ग्राम सभाओं की भूमिका और अधिकारों को विस्तार से परिभाषित किया गया है।

15 अनुसूचित जिलों में यह नियमावली लागू होगी और बड़े सरकारी या निजी परियोजना निर्णयों में ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य होगी।

क्या बदलने वाला है?

PESA नियमावली लागू होने से आदिवासी क्षेत्रों में अब:
ग्राम सभा की पूर्व सहमति (Prior Consent) के बिना भूमि अधिग्रहण या खनन नहीं हो सकेगा।

ग्रामीण योजनाओं तथा स्थानीय विकास कार्यक्रमों में ग्राम सभा की अंतिम निर्णय-प्रक्रिया होगी।

पारंपरिक संसाधनों के संरक्षण और उपयोग में समुदाय का प्रत्यक्ष नियंत्रण सुनिश्चित होगा।

प्रशासन से अधिकार ग्राम सभा तक

राज्य पंचायती राज विभाग के सचिव मनोज कुमार के अनुसार, नियमावली में वे सभी प्रावधान शामिल हैं जो PESA एक्ट के तहत ग्राम सभा को अधिक निर्णय-शक्ति देते हैं — चाहे वह खनन लीज़, पानी के उपयोग, भूमि नीलामी या स्थानीय विकास दिशा-निर्देश हों।

राज्य तथा सामाजिक प्रतिक्रिया

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि यह निर्णय अनुसूचित क्षेत्रों में स्वशासन और सामाजिक न्याय को मजबूत करना चाहता है और इसे ग्राम समुदायों को समर्पित किया गया है।

राज्य मंत्रिमंडल ने कुल 39 अन्य प्रस्तावों को भी मंजूरी दी, जिसमें विकास परियोजनाओं और प्रशासनिक सुधार शामिल हैं।

Gram Sabha अब सशक्त

स्थानीय खबरों के अनुसार, नियमावली के अंतर्गत ग्राम सभा अब कुछ मामलों में दंड लगाने और अपनी भूल-चूक की स्थिति में माफी देने का प्रावधान भी रख सकेगी, जिसमें ₹1,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

क्या मायने रखता है यह निर्णय?

PESA एक्ट का उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों को अपने संसाधनों और सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्थाओं पर निर्णय लेने का अधिकार देना रहा है। decades के बाद अब झारखंड में यह एक्ट वास्तव में लागू होने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है, जिसका असर स्थानीय आत्म-नियंत्रण, पारंपरिक प्रशासन और संसाधन संरक्षण पर स्पष्ट दिखेगा।
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